SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "सन्निधान ने मुझ पर जो विश्वास रखा है उसका द्रोह कभी नहीं होगा। यह बात मुझसे छिपाकर किसी अन्य तरीके से जाँच करायी होती तो मैं शायद खुद को कभी भी आपका विश्वासपात्र नहीं मानता। इसके लिए मैं सन्निधान का बहुत कृतज्ञ हूँ। बहुत दिन पहले, करीब एक वर्ष पूर्व मेरी बहिन वामशक्ति पण्डित के वहां जाकर भय निवारक यन्त्र बनवाकर लायी थीं तो खुद दण्डनायक जी का उनका था। यह बात उन्होंने की थी। इसके पश्चात मैंने उन्हें बता दिया था कि अब कभी भी उस वामशक्ति के साथ किसी तरह का सम्बन्ध न रखें और उस वामशक्ति पण्डित की गतिविधियों पर दृष्टि रखने के लिए गुप्तचर की व्यवस्था भी कर रखी थी। तब से उस वामाचारी का सम्बन्ध दण्डनायक के घर से कट ही गया था। ऐसी स्थिति में प्रभु को जो ख़बर मिली है उसे सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुजा है। मैं तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया हूँ । मैं शीघ्र ही वस्तुस्थिति का पता लगाकर प्रभु से निवेदन करूंगा।" - गंगराज ने कहा। "पहले जिस भय के वशीभूत हो दण्डनायिका उस वामाचारी पण्डित के पास गयी थीं, उस समय का कारण क्या था उनमें किसके कारण डर पैदा हो गया था? यह कुछ मालूम पड़ा प्रभु ने पूछा। "पता नहीं, किस तरह का डर था बच्चियाँ सोते-सोते कभी-कभी चीख पड़ती थीं डरकर ! यह बात मेरी बहिन ने कही थी।" कहकर गंगराज ने बात समाप्त कर दी। "अच्छा, तो ठीक है प्रधानजी ।" एरेयंग ने कहा । गंगराज ने समझा कि जिसके लिए बुलावा भेजा था वह काम समाप्त हो गया । उठकर प्रभु को प्रणाम करके वह जाने लगे कि तभी प्रभु एस्यंग ने पूछा, " हेगड़े मारसिंगय्या के आने के सम्बन्ध में कोई ख़बर मिली ?" "मुझे तो कोई समाचार नहीं मिला है। महादण्डनायक के पास कोई ख़बर पहुँची हो तो इयक्त कर निवेदन करूँगा।" गंगराज ने कहा । "उनके ठहराने की व्यवस्था कहाँ की है ?" "दो-तीन निवासों की बात सोच रखी है। राजमहल के पास ही एक है। परन्तु वह हंगाजी के लिए पर्याप्त होगा या नहीं इसकी शंका है इसलिए उनके आने पर उनके लिए जो उपयुक्त मालूम पड़े नहीं दिया जा सकेगा वही सोचा है।" "वे कहीं भी रहें, हमारे लिए सब बराबर है। परन्तु वे राजमहल के पास रहें तो वह कुछ लोगों के लिए ईष्यों का कारण हो सकता है इसलिए उनका निवास दूर ही रहना ठीक होगा ।" पट्टमहादेवी शान्तला भाग दां 40
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy