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________________ सांकेतिक रूप से आसन्दी-पांच सौ परगने के प्रदेश को भेंट में देने का निश्चय सन्निधान ने किया है। सन्निधान का यह कार्य प्रजा स्वीकार करेगी-यह विश्वास किया जाता है।" इतना कहकर हाथ जोड़कर सवको प्रणाम किया और साथ ही सन्निधान को भी प्रणाम किया। लोगों ने आनन्दित हो करतल ध्वनि की। बम्मलदेवी चक्कर में पड़ गयी। वह उठ खड़ी हुई, कहना चाहती थी कि उसे यह सब कुछ नहीं चाहिए। किन्तु मुँह से शब्द भी नहीं निकला। वैसे ही सिर झुकाकर खड़ी रही। ___ पल्लव राजकुमारी को सन्निधान का निर्णय शिरोधार्य होगा। बिन मांगे जी मिला है उसे बर मानना चाहिए।" कहती हुई शान्तलदेवी उठ खड़ी हुईं। सुरिंगेय नागिदेवण्णा और अन्य दण्डनायक भी रुट खड़े हुए। सोने का परात लिये हरकारे ने परात पर हँका रेशम का वस्त्र हटाया। इसमें से माला लेकर शान्तलदेवी ने बम्मनदेवी को पहनायी। लोगों ने खुशी से तालियां बजायौं। __बम्मनदेवी कृतज्ञता वश पुलकित हो उठी। भावना के आवेग में बोली, ''दीदी, यह मेरी योग्यता और क्षमता के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी है," कहकर उसने शान्तलदेवी के पैर छूकर प्रणाम किया। उन्हें उठाती हुई शान्तलदेवी ने कहा, "वहिन, सन्निधान की प्राण-रक्षा करनेवाले तुम्हारे ये बाहु बन के समान सबल हैं। इस बाहुबल के होते हुए तुम किसी भी तरह का दायित्व वहन कर सकती हो, इस बात को तुमने प्रमाणित कर दिखाया है। पोसल सिंहासन कृतज्ञ है।" शान्तलदेवी ने परात में से शासन-पत्र निकालकर बम्पलदेवी को दिया और सन्निधान के पास जा बैठी। हरकारा पीछे की ओर सरक गया। मुरिंगेय नागिदेवण्णा वगैरह भी अपने-अपने स्थान पर जा बैठे। बम्पलदेवी चित्रवत् शासन-पत्र हाथ में लिये माला पहने खड़ी रही। बिट्टिदेव ने मचिदण्डनाथ की ओर देखा। दण्डनाथ अपने आसन से उठकर सन्निधान के पास आये। बिट्टिदेव ने कहा, "पल्लव राजकुमारी कुछ कहना चाहती हैं। लेकिन लगता है, संकोच के कारण कह नहीं पा रही हैं। निस्संकोच होकर दिल खोलकर कहें तो हमें भी सन्तोष होगा। माँच अरसजी! उनसे कहिए कि संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं।" उन्होंने कुछ झुककर प्रणाम कर बम्मलदेवी के समीप जाकर कान में धीरे-से कहा, 'संकोच की जरूरत नहीं। कह दीजिए।" बम्मलदेवी ने वह शासन-पत्र उनके हाथों में पकड़ाकर, राजदम्पती को प्रणाम किया, शेष सभासदों को भी प्रणाम कर, उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित करती हुई बोली, "कृतज्ञता से मेरा हृदय भर उठा है। मुँह से बात ही नहीं निकल रही पट्टमहादेवी शान्नला : भाग दो :: 455
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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