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________________ जो चिराय हों,” पोय्सल च्यानध्वज आचन्द्रार्क इसी तरह सदा फहरता रहे"... विजयोत्सव की विधियों समाप्त होते ही दण्डनाध सिंगिमय्या अपने आसन से उट खड़े हुए। सिंहासन को प्रणाम किया, और उपस्थित जनस्तोम को प्रणाम कर बोले, 'पोयसल राज्य के आदरणीय प्रजाजनो! सन्निधान के आदेश के अनुसार, मैं अब आप महानुभावों के समक्ष कुछ बातें कहने के लिए खड़ा हुआ हूँ। इन बातों को स्वयं सन्निधान को ही कहना था। अब के युद्ध में जीत हमारी हुई। इसका मुख्य कारण हमारे सैनिकों की निष्ठा और हमारी पट्टमहादेवी जी का रणव्यापार में चातुर्वयुक्त योग्य दिशादर्शन है। उनके निर्देश के अनुसार ही हमारी संना अगर नहीं चलती नां शत्रसेना को भेटकर आगे जाना और विजय पाना असाध्य कार्य होता। यह बात कहते हुए मेरा हृदय आनन्द से फूल उठता हैं। पट्टमहादेवी मेरे रिश्ते की ग्क्त सम्बन्ध से भानजी हैं, लेकिन इसका यह कारण नहीं। रिश्ते की होने पर भी, उम्र की दृष्टि से बहुत छोटी होने पर भी, युद्ध-नीति में अपने को निष्णात मानकर गर्व करनेवाले हम पुरुषों को भी उन्होंने स्त्री होकर भी मार्गदर्शन देकर एक आदर्श उपस्थित किया है। इस देश की पट्टमहादेवी के स्थान पर उनका विराजना तो इस देश के लिए महान सौभाग्य की बात है और यह हमारा महाभाग्य है कि हम सब उनके साथ हैं। जैसे हमारे इस विजय के लिाा पट्टमहादेवी कारण हैं वैसे ही हमारे महासन्निधान को बचाने के महान भाग्य की प्राप्ति के लिए पल्लब ग़जकुमारी बम्मलदेवी जी कारण हैं। वे आप लोगों के लिा! अपरिचित हैं। फिर भी इस बुद्ध के वक्त के अगर न होती तो क्या हालत हुई होती, कहा नहीं जा सकता। सन्निधान वहाँ हम सबके समक्ष बैटे हैं। फिर भी युद्ध के आघात से अभी पूर्ण स्वस्थ होना हैं। अपने प्राणों की आशा त्यागकर सन्निधान का घोड़ा जाँघ में जख्मी होकर जब गिरने ही वाला था तो अपने घोड़े को सरपट दौड़कार वे सन्निधान के पास जा पहुँचीं और उन्हें अपने घोड़े पर सुरक्षित स्थान पर ले आयीं। यह आश्चर्य की बात भी है और प्रशंसनीय विषय भी। दो-चार क्षणों की देरी हो जाती ला नीचे गिरे सन्निधान शत्रुओं के तीरों के शिकार हो जाते। पल्लव राजकुमारी जी के बायीं बांह पर तीर लगने पर भी अपने पावों को ढीला न छोड़कर सन्निधान की रक्षा का कार्य निबाहा है। वास्तव में यह एक अद्भुत कसमात ही है। इस तरह इन शक्ति-द्वय ने विजय और संरक्षण का कार्य दक्षता के साथ निर्वहण करके पोय्सलों की कीर्ति को संजोये रखा है। ये दोनों महामानिनी पोय्सल देश के नारी-समूह के लिए आदर्श और चेतनास्वरूप हैं। उनकी ही तरह देश के स्त्री और पुरुष देश के लिए मर मिटने को तैयार हो जाएँ तो हमारे इस राष्ट्र की और कोई आँख भी नहीं उठा सकेगा।" ___ “पल्लव राजकुमारीजी के इस महान कार्य की साधना के उपलक्ष्य में 451 पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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