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"मतलब यह कि पट्टमहादंवो को रविभव्या की मदद की जरूरत है। माँ, इधा सास-बहू के बीच जो बातचीत हुई, उसका व्यौरा हमें मालूम नहीं। फिर भी हम समझते हैं कि हमारे साथ रणक्षेत्र में महारानी के जाने की ही बात हुई होगी।
पारी इच्छा नहीं थी कि देवी को साथ ले जाएँ। और फिर, आपके पीठ पीछे निर्णय न करने का भी वचन हमने दिया था सो हमें याद है। परन्तु हमारे वचन देने की यह बात देवी को मालूम नहीं थी। उन्होंने जब हमारे साथ युद्धभूमि में जाने का प्रस्ताव रखा तो हम असमंजस में पड़ गये। हमने कहा भी कि इसकी जरूरत नहीं। हममें किसी को भी अपने पूर्व निर्णय की बात याद नहीं रही। इस युद्ध के आरम्भ होने के पूर्व हमारे ही जाने की बात का जव निर्णच हुआ था सबकी राय थी कि पट्टमहादेवी भी साथ जाएंगी 1 जन्न यह बात हुई कि हमारे जाने की जरूरत नहीं, तभी यह कार्यक्रम स्थगित हुआ था। प्रकृत सन्दर्भ में हमारे जाने की बात निश्चित कर दी गयी, तो पट्टमहादेवो ने अपनी इच्छा प्रकट की। बहुतों ने यह राय प्रकट की कि इनका रणक्षेत्र में जाना उचित नहीं है। इस विषय पर सोच-विचार कर निर्णय करने के ख्याल से उस दिन की सभा में तात्कालिक रूप से वह बात नहीं उठायी गयी। उसके बाद फिर सभा बैटी, उसमें इस ढंग से बातचीत चली कि इनका जाना सबको युक्तिसंगत लगा। पट्टमहादेवी की तरफ से रेविमच्या बोल रहा था। यहीं रहने के लिए जब उससे कहा गया तो वही समझा जा सकता है कि महामातृश्री को समझाने के लिए उसकी मदद लेने की स्थिति पैदा हो गयी हैं। इस चर्चा के उटने से पहले इस सम्बन्ध में सभी बातों को विस्तार के साथ बताकर आपकी सहमति लेने की बात सोची थी। हमने यह नहीं सोचा था कि इतनी जान्दी आप लोगों में यह बात छिड़ सकती हैं। यही बताने के ख्याल से आपके प्रकोष्ठ में जाकर हम फिर इधर चले आये। माँ, देवी की इच्छा की साधुता ने सबको आकर्षित किया हैं। इसलिए आप सहर्ष स्वीकृति के साथ हमें आशीवाद देकर भेजिए। इसमें हम दोनों का सुख निहित हैं। देश की भलाई के लिए और प्रजा में सक्रियता उत्पन्न करने के द्योतक रूप में भी यह बहुत आवश्यक है। सम्पूर्ण देश की प्रजा को अब इस बात के प्रति प्रोत्साहित करना भी जरूरी है कि राष्ट्रहित के लिए लिंगभेद के बिना सबको सब तरह से त्याग करना होगा। चारों दिशाओं में शत्रु पासलों को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए तैयार खड़े हैं। इसलिए राष्ट्रप्रेम की प्रभावना का काम अब बहुत जरूरी हो गया हैं।'' यों विहिदेव ने परिस्थिति समझकर कहा।
शान्तलदेवी ने उठकर दोनों के पैर छूकर प्रणाम किया। एचलदेवी का हाथ आप-सं-आप शान्तलदेवी के मस्तक पर चला गया। एक क्षण सव मौन रहे आये। फिर एचलदेवी उठ खड़ी हुई। रिट्टिदेव और
पट्टमहादेवी शान्तला · भाग टो :: 434