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________________ महाराज ने बताया, "रणक्षेत्र से बहुत जरूरी ख़बर आची है। और हमें तरन्त वहाँ जाना है, इसलिए रेबिमय्या और पट्टमहादेवी तथा हम कुछ रक्षकदल के साथ अभी तुरन्त बेलापुरी के लिए रवाना होंगे। शेष सब लोग कल बेलापुरी लौट जाएँगे। __"तो तुमने और शान्तलदेवी ने विचार कर वह निर्णय किया है-यही समझ तेती हूँ।" 'हो।" "शान्तलदेवी को भी तुरन्त तुम्हारे साथ रवाना होने से मैं समझती हूँ कि वहाँ मन्त्रिपरिषद् की बैठक भी होगी।" "हाँ। अब और समय नहीं गवाना चाहिए। नहीं तो आपके साथ देयी भी आ सकती थी।" "तो वह तुम्हारे साथ युद्धक्षेत्र तो नहीं जाएगी न?" ''इस बारे में सोचा ही नहीं, माँ।" "मेरे पीट पीछे तुम लोग ऐसा कोई निर्णय न कर बैठना।" "अच्छा माँ।" कह बिट्टिदेव ने घण्टी बजायी। रेक्मिय्या ने किवाड़ खोन दिया। बिट्टिदेव पट्टमहादेवा के प्रकोष्ठ की ओर जल्दी-जल्दी कदम बढ़ात चल दिये। रबिमव्या भी पीछे-पीछे चला गया। महामातृश्श्री एचलदेवी, त्यम्मलदेवी, राजलदेवी, विट्टिगा, राजकुमारी और कुमार के बेलापुरी पहुंचने तक मन्त्रिपरिषद् वर्तमान युद्ध-स्थिति के बारे में सभी पहलुओं से विचार-विमर्श कर निर्णय ले चुकी थी। तदनुसार खुद महाराज बिट्टिदेव के युद्ध में जाने की बात निश्चित हो गयी थी। तभी शान्तलदेवी ने भी रणक्षेत्र में जाने की अपनी इच्छा प्रकट कर सबकी स्वीकृति पा ली थी। बेलापुरी पहुँचते ही एचलदेवी को यह सब मालूम हुआ। वह किसी औपचारिक रीति-नीति की परवाह न कर सीधे शान्तलदेवी के अन्तःपुर में गयीं! पूछा, “अम्माजी, सुनती हूँ आप दोनों ने युद्धभूमि में जाने का निश्चय कर लिया है, यह सब है?" उन्होंने तुरन्त महाभातृश्री के चरणों में झुककर प्रणाम किया और कहा, "आशीर्वाद दो माँ, मैं अपना मांगल्य सुरक्षित रख सकूँ ।" "तो क्या छोटे अप्पाजी की अंगरक्षिका होकर जा रही हो?" । "सहधर्मिणी की हैसियत से जा रही हूँ। मुझे उनके सभी कार्यों में सहभामिनी बनना चाहिए न?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 437
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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