SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझती थी पर बाद में वह उसके प्रति स्वयं महाराज और पट्टमहादेवी के उदार व्यवहार को देखकर, तथा उसमें सन्धित अन्य घटनाओं की जानकारी प्राप्त कर उसके जीवन के सभी पहलुओं से परिचित हो गयी थी। सामाजिक जीवन के लिए कुछ नीति-नियम का बन्धन आवश्यक है। सांसारिक जीवन सुखमय बनाना हो तो सत्य-निष्ठा के साथ उनका पालन करना होता है। जब कभी इन नीति-नियमों की सीमा के लाँय जाने की स्थिति आने पर भी समाज की उदारता के कारण दुःखी जीवन भी सुखमय बन जाता है। इस दिशा में पोप्सल महाराजा और महारानी तथा अन्य लोगों ने भी योग्य मार्गदर्शन किया है। कहे विना ही बरतकर उन्होंने आदर्श प्रस्तुत किया है। ऐसी हालत में मेरी अभिलाषा भी उनकी इस उदारता से सफल क्यों न हो सकेगी:-यही वह सोचती थी। जब यह बात उठी थी कि “हाश्य किसी के गले में माला पहनाने के लिए तैयार हैं मगर दिल उस माना को पहनाने के योग्य कण्ठ की खोज कर रहा है तब उसकी और बिट्टिदेव की दृष्टि ने, जो यद्यपि क्षण-भर की ही रही लेकिन उसने ही में उसमें एक आत्मीय भाव पैदा कर दिया था। उसने क्या सोचा होगा? मुझमें इतनी आत्मीगला पैदा कर सकनेवाली वह दृष्टि मेरी अभिलाषा के अनुकूल दृष्टि ही है न ? सच ही. मैं बिट्टिदेव के शौर्य, सौन्दर्य, सामर्थ्य, औदार्य, दक्षता आदि गुणों के बारे में सन चुकी हूँ। तभी तो मेरे मन में एक सहज रुचि के भाव उत्पन्न हुए थे। अभी जैसी भावना उत्पन्न हुई है वह उस समय तो नहीं थी। उनकं उस प्रथम दर्शन के समय से पाला पहनाने के लिए चोग्य कण्ट की खोज करने की बात के उठने तक भी मुझमें एक तीव्र गौरव की भावना मात्र थी। मेरा मन कृतज्ञता से भर उठा था। मैंबर में फंसनेवाला जैसे कोई सुरक्षा का स्थान पा गया हो, ऐसी तृप्ति मुझो मिली थी। आश्रयदाता के प्रति निष्ठा एवं श्रद्धा रखकर अपनी योग्यता का परिचय करा देने की प्रबल इचछा थी। परन्तु अब वे भावनाएँ दूसरी ही प्रवृत्ति की ओर बढ़ रही हैं। इस प्रवृत्ति का पर्यवसान क्या होगा? अलभ्य वस्तु को पाने की केवल इच्छा ही रह जाय तो? सो कैसे होगा? इस दृष्टि का क्या अर्थ हैं? व देखनेवाले ही बता सकेंगे। उससे अर्थ निकालना होगा। विवरण देखकर अर्थ भी बताया जा सकेगा। वह मेरे लिए अनुक्ल भी हो सकता है। इस विषय में पट्टमहादेवी के क्या विचार होंगे? तप करके उन्होंने उन्हें पाया है। उनका अटल विश्वास है कि उनपर उन्हीं का स्वामित्व हैं। उनके मन में यह भागना गहरी बैठ गयी है कि उनके स्वामी की दृष्टि अन्यत्र नहीं भटकेगी। ऐसी स्थिति में मेरी आशा जैसे मन में अंकुरित हुई, बढ़ी, वैसे ही वहीं अन्त होना ही अच्छा हैं : 8वर में फंसे हपको उबारकर, आश्रय देनेवालों को हमारे किसी भी व्यवहार से काट नहीं होना चाहिए। इसलिए अब मुझे संचम से रहना होगा।-बम्मलदेवी के मन में इस तरह से न जाने कितने 426 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy