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उपाहार लेने महाराज बिहिदेव अन्तःपुर की ओर चल दिये।
आश्रय की अपेक्षा से जो आये थे वे चालुक्य चक्रवर्ती के सामन्त थे, इसलिए मन्त्रणा सभा में सभी पहलुओं पर आमूल-चूल विचार-विमर्श किया गया। पट्टमहादेवी भी इस सभा में उपस्थित रहीं । अन्त में मंचिदण्डनाथ, बम्मलदेवी, राजलदेबी- इन सबको भी बुला लिया गया। जिन-जिन के मन में जिन-जिन बात को लेकर शंकाएँ उत्पन्न हुई थीं उन सभी के विषय में उनसे उचित समाधान प्राप्त होने के बाद, उन्हें आत्मीयजन की तरह मानने का निर्णय लिया गया। गंगराज के बेटा दण्डनाथ बोप्पदेव स्वयं ही मंचिदण्डनाथ की अश्वसेना को राज्य के अन्दर स्वागत कर लाने गया। इससे पहले ही सवारनायक अनन्तपाल से उसका परिचय हो चुका था ।
शीघ्र ही वह सेना बेलापुरी पहुँच गयी। दो दिन विश्राम करने के बाद, बेर-सीमा की पोव्सल सेना में इस सेना को सम्मिलित करने का निर्णय भी ले लिया गया। पूर्व - निश्चय के अनुसार, महाराज के साथ युद्ध में पट्टमहादेवी को भी जाना था। पुनीसमय्या के साथ यह अश्वसेना और मंचिदण्डनाथ भी सम्मिलित हो गये श्री इसलिए यह निर्णय भी लिए गए कि में सन्निधान का जाना अब आवश्यक नहीं है ।
युद्ध में प्रथम बार सम्मिलित होने का जो मौका मिल रहा था वह छूट गया इससे शान्तलदेवी कुछ निराश सी हो गयीं थीं ।
बम्मलदेवी की भी यहीं दशा थी । वह युद्ध में अपना कौशल एवं शक्ति सामर्थ्य दिखाकर मन में अंकुरित आशा को उद्वेग देना चाहती थी। पर ऐसा नहीं हो सका। जब महाराज ही युद्ध में नहीं जाएँगे तो पट्टमहादेवी भी नहीं जाएँगी। ऐसी दशा में बम्मलदेवी को जाने का भला अवसर ही कहाँ ?
इस सबसे ज़्यादा निराश हुई थी चट्टला । उसका पति रावत पायण पुनीसमव्या के साथ पहले ही चला गया था। मायण की उदारता के कारण उसका बिगड़ा हुआ पारिवारिक जीवन सुष्ठु और सुखकर बन गया था। परिवार को नये सिरे से बसाने पर उनके पीठ पीछे लोग व्यंग्य करते, हंसी उड़ाते और उनकी ओर दुर्भावना से देखते। परन्तु वे दोनों महामातृश्री से लेकर सम्पूर्ण राजपरिवार के विश्वासपात्र वन गये थे- - इस वजह से धीरे-धीरे पीठ पीछे बात करनेवालों के मुँह बन्द हो चले । चट्टला के मन में यह विश्वास घर कर चुका था कि यदि वह युद्ध में सक्रिय रहेगी तो राष्ट्र का हित ही होगा ।
बेलापुरी आने पर शुरू-शुरू में वम्मनदेवी चट्टलदेवी को केवल नौकरानी ही
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 425