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________________ "हम एक बार उनसे मिल सकतीं तो शायद हम अधिक उपकृत हो सकती थीं ।" "क्यों? आपके नायक अनन्तपाल जी सारी बातें नहीं कह सकेंगे? “पुरुषों के साथ पुरुषों के कहने में तथा स्त्रियों के स्त्रियों से कहने में अन्तर हो सकता है। " "हम पुरुष जात इस बात को कैसे समझेंगे? अभी थोड़ी देर में पट्टमहादेवी वहीं पधारनेवाली हैं। परिचय करा दूँगा आपको जो कहना हो उनसे एकान्त में ही कह सकती हैं।" I "आज अचानक पट्टमहादेवी क्यों आ रही हैं?” माचिकब्बे ने पूछा । " आज हेग्गड़ती का जन्मदिवस है नः इसलिए मायके ही भोजन के लिए आएँगी यों कहला भेजा। मुझे भी यह बात मालूम नहीं थी ।" "बच्चे भी आएँगे?" माचिकब्बे ने प्रश्न किया । नहीं, पड़महादेवी अकेली ही आएँगी। साथ में शायद चट्टलदेवी भी आए।" मारसिंगय्या ने कहा । "खैर, अच्छा हुआ। बच्चे आते तो उन्हें मिठाई के बिना ही भोजन कराना पड़ता।" माचिक ने कहा । "क्यों बनवायी नहीं ?" "नहीं ।" "नाती नाते ही मोठा खाएँगे, पति नहीं खाएंगे यहीं हेग्गड़ती का मतलब है?" "अच्छा, जाने दीजिए, आप ऐसे ही तमाशा करते रहते हैं। मुझे स्मरण ही नहीं था कि आज मेरा जन्मदिन है।" I "अम्माजी ने पट्टमहादेवी होने पर भी इस बात को याद रखकर कहला भेजा हैं देखो ! जल्दी कुछ मिटाई नहीं बन सकती? अभी राजमहल से आने में आधा प्रहर लगेगा। और फिर ये अतिथि भी तो हैं। आज तुम्हारे धन्य भाग हैं। तीन-तीन राजघराने के अतिथि होंगे तुम्हारे जन्मदिन के अवसर पर । इसीलिए इनका परिचय पाते की मैंने कहा कि हमारा घर पुनीत हुआ। अच्छा, अब चलो, आप लोग मुझे क्षमा करें, इस लिवास में भोजन रुचता नहीं ।" कुछ-कुछ प्रणाम करने के ढंग से झुककर मारसिंगय्या अन्दर चले गये। माचिकच्चे भी "क्षमा कीजिए अभी आधी " कहकर अन्दर चली गयीं। इन दोनों ने फिर एक बार एक-दूसरे की ओर देखा । कुछ देर तक र्या ही बैठी रहीं । न हेग्गड़े ही आये, न हेग्गड़ती जी ही । "लगता है कि नायकजी सन्निधान तक पहुँच गये हैं।" धीमे स्वर में 412 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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