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मिला। आतिथ्य भी हुआ। बम्मलदेवी ने अभी सोचा न था कि बात शुरू स. करें। इस अतिथि-सत्कार ने उसे इस विश्य में कुछ सोचने का समय दे दिया। साथ ही, माचिकटचे की सरलता से भी परिचित करा दिया। प्रकारान्तर से पिरियरमी चन्दलदेवी के इन्हीं के यहाँ गुप्तवेश में रहने की बात से भी बप्पलदेवी परिचित थी। इसलिए पहले से इनके प्रति जो सद्भावना उसके मन में रही वह पुष्ट हो गयी।
बम्मलदेवी ने विनीत होकर कहा, "हम पीसल राज्य में आश्रय पाने के लिए आयी हैं। उसे प्राप्त करने में आपको हमारी मदद करनी होगी।'
"यह तो राजमहल से सम्बन्धित विषय...."
चौच ही में बम्मलदेवी ने कहा, “पोय्सल पट्टमहादेवी आपकी पुत्री हैं, इसलिए यदि आप चाहेंगी तो हमारा काम बन जाएगा।"
"आप लोग अन्यथा न समझें। जैसा आपने कहा पट्टमहादेवी मेरी पुत्री हैं अवश्य, परन्तु इसो को लेकर हम राजकीय विषयों में हस्तक्षेप नहीं करते, न ऐसा करना उचित ही है। वास्तव में सन्निधान स्वयं स्वतन्त्र रूप से कोई निर्णय नहीं लेते। राजमहल के सभी अधिकारियों से विचार-विमर्श कर, जनकी समति लेकर ही वे कोई निर्णय किया करते हैं। ऐसी स्थिति में भला में तो क्या कर सकती
"मक नि: नीम की भी रहे, हमारी बात को उच्च-स्तर तक पहुँचाने के लिए राजमहल के किसी आत्मीय जन का सहयोग मिल जाय तो हमारा काम आसान हो जाए। आप कृपा करें तो पट्टमहादेवीजी को समझा सकती हैं।
'आपको यहाँ की रीति ही शायद मालूम नहीं । आपका कोई कार्य राजमहल से होना हो तो आप स्वयं समक्ष जाकर निवेदन करें। किन्हीं विचौलियों के लिए यहाँ स्थान नहीं। इसलिए आपका स्वयं जाना और प्रत्यक्ष मिलना ही उचित है।''
"हम स्त्रियाँ सोधे सन्निधान में जाकर मिलें, हममें इतना साहस कहाँ ? इसीलिए तो हम यहाँ आयीं।"
“आप ही बताइए क्या करें? हम राजकीय विषयों में प्रवेश नहीं करतीं।"
"अच्छा, जाने दीजिए। कम-से-कम पट्टमहादेवी के पास हमें ले जाने की कृपा करें; बहुत उपकार होगा।
"इसके लिए भी मुझे हेग्गडेजी की अनुमति प्राप्त करनी होगी 1 वे अब आते ही होंगे। तब तक आप बैठिए मैं अभी आयी।'' कहकर माचिकव्ये घर के अन्दर चली गयीं।
बम्मलदेवी और राजलदेवी ने परस्पर देखा। राजलदेवी ने बम्मलदेवी के कान
410 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो