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यही विचार था कि किसी तरह से भी हो. पोसन्ना की शक्ति का बढ़ने नहीं देना है। परेवंग प्रभु की मृत्यु उनका उत्तजित कर रहो थी। इसीलिए जग्गदेव को उकसाकर उन्होंने लड़कों पर हमला करवाया था। बालक होने पर भी वे अपने पिता की तरह समर्थ, बुद्धिमान, धीर है इस बात का पता उन्हें तभी लगा था। इस चुद्ध की चर्चा कानोंकान फैन गयी घो। इसस कन्ट नंगों में ईर्ष्या मी उत्पन्न हो गयी थी तो कुछेक इससे खुश भी थे।
कल्याणी के चालुक्यों से शिकस्त खाकर अपमानित होनेवाले कुछ लोगों को । लाचार होकर उनकं अधीन सामन्त बनकर रहना पड़ रहा था। ऐसे लोगों के लिए यह समाचार विचार करने की बात बन गयी धी।
प्राण हपली पर रखकर धारानगरी की पगजित कर, चालुक्यों की विजय घोषणा करनवाले पोसलों का चल बढ़ जाय और अपने साम्राज्य के लिए वह कांटा बन जाय · इस इगद म विक्रमादित्य द्वारा पासला के प्रति जो व्यवहार किया जाता रहा उससे दुनिया अपर्गिचत तो नहीं धौ। खासकर कल्याणी के चालुक्यों से हार खाय हा नांग कल्याणी के चालकों आर पोसलों की शक्ति-सामर्थ्य को तौलकर दख रहे धे। विक्रमादित्य की एंट को हीला करना हा ती बह कंवल पारसलों से ही सम्भव हो सकता है-यह धारणा कट लोगों की बन गया थी। इन दोनों में, चाहे कोई हार या जीत, नय भी अपनी हालत में कोई परिवर्तन नहीं होगा-इस बात से परिचित होने पर कुछ मानसिक सन्तोष तो होगा ही। एसे भी लोग थे ।। जो यह चाहते थे कि जिन्हान हमें पराजित किया है, उनको भी वही देशा हो। एस टींग माग्नेवाले घमण्डियां के लिए यही उचित उण्ट है। भारत के दक्षिणी 'भूभाग में अनेक राज्यों ने जन्म लिया, विकस्स्ति हुए, फिर कम्हलाकर झड़ गये। फिर भी इन राज्यों के वारिस कहलानेवाल परिवागं के लोग पत्र-नत्र जीवित रहे। वैगिप्रदेश के पूर्वी चालुक्य, पान्नव और पानवां को आत्मसात् करनेवाले मालम्ब- लांग तथा चाल राजाओं से हार खाका कन्चाणी को चानक्यों के अधीन हां तकलीफ़ झनने पड़े रहनेवाले गंगवंशीय - इस तरह इन राजवंशों के उत्तराधिकारी दुर्बल होकर दक्षिण भारत में, खासकर कनाटक के माध्य भाग में, झुंझलाते हुए किसी तरह समय काट रहे थे। कुछेक पांसलों की बढ़ती हुई शक्ति की सराहना कर रहे थे। ये और इनसे मिले हुए गजा, सामन्तों ने पोसलों के माय शामिल होना उचित समझा 1 इस सम्बन्ध में मन्धि-सन्धान करने की बात सोचनेवालों में पूर्वी चालुक्य वंशी मंचिदण्डनाथ एक थे। उनके आश्रय में पल्लय राजवंशी पललय गोविन्द और चामुण्डब्बरसी की पुत्री वम्मलदेवी जीवन-यापन कर रही थी। मोचदण्डनाथ की भानजी राजनदंवो माता-पितृविहीन होने के कारण, उन्हीं के जाश्रय में पालती रहीं। चम्मलदेवी गजलदेवी स उम्र में थोड़ी बड़ी थी।
HINE:: पट्टमहादेवा शान्ताना : पाग दी