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________________ अधिकारी वर्ग को समीप से देख और उनकी वाणी सन पुलकित हो नूतन उत्साह से नवजीवन पाकर सब लोग अपने-अपने स्थानों को लौट गये। उस दिन उनकी निष्ठा एवं निस्पृहता को वास्तव में एक नयी चेतना मिली थी। इसका फल भी शीघ्र ही देखने को मिला। समूचा राष्ट्र नये कार्योत्साह से स्पन्दित हो उठा। राष्ट्ररक्षा के लिए आवश्यक सैनिक शक्ति को बढ़ाने की तैयारियों के साथ, भण्डार की सम्पत्ति भी बढ़ने लगी। राष्ट्र की विरोधी शक्तियों को दबाने के लिए राष्ट्रवल को समृद्ध करने का कार्य आसान हो गया। यह सब काम नन्दन संवत्सर के उत्तरार्ध और विजय संवत्सर के पूर्वार्ध के बीच सम्पन्न हुआ। इस विजय संवत्सर में और भी कुछ खास बातें हुईं। पट्टमहादेवी और महाराज बिट्टिदेव ने दो कार्यों को इस बीच और सम्पन्न कर डाला-पुत्र की तरह पले यिष्टिगा का स्पनयन और राजकुमार उदयादित्य का विवाह । उपनयन और विवाह इन दोनों को सम्पन्न करने के लिए मुहूर्त कुछ दिनों के अन्तर पर निश्चित किये जाने के कारण मरियाने दण्डनायक, रानी पदालदेवी, चामलदेवी और बोपदेवी को भी आमन्त्रण भेजा गया था, लेकिन वे नहीं आये। इसका कारण पद्मलदेवी का हठ ही था। उसने सोच रखा था कि इन लोगों के बड़प्पन दिखावे को देखन क्यों जाएँ। उनकी अनुपस्थिति में ही उपनयन और विवाहकार्य सम्पन्न हुए। इस सन्दर्भ में भोजनकाल में स्वयं शान्तलदेवी प्रत्येक पत्तल के पास जा-जाकर उपचार करती हुई, परोसती हुई व्यस्त रहीं। इसे देखकर उपस्थित सभी जन अत्यन्त प्रभावित हुए। अपनी पट्टमहादेवी के आत्मीय भाव को अपने हृदयों में उतारकर बड़े आनन्द और उत्साह से सभी अभ्यागत अपने-अपने स्थान को लौट गये। चालुक्य विक्रमादित्य की रीति-नीतियों के कारण उनके मालिकों में काफी असमाधान फैला हुआ था। जहाँ-तहाँ विरोधभाव भी उत्पन्न हो गया था। इसे उनका अविवेक ही कहें कि उन्होंने पोसलों को अपने से दूर ही नहीं कर लिया था, उनसे द्वेष भी करने लगे थे। फिर भी पीप्सलराज ने अपने वंश की उदार नीति के अनुरूप स्वयं ही चातुक्यों पर किसी तरह का विरोध प्रकट नहीं किया। पट्टिपोंबुच के जग्गदेव को उकसाकर उन्होंने पोय्सलों पर हमला करवाया। पोय्सलों ने जग्गदेव को दबाकर भगा दिया था। इस घटना के कारण तब चालुक्यों को पोय्सलों की शक्ति-सामर्थ्य का अच्छी तरह पता लग गया था। जग्गदेव की इस पराजय ने विक्रमादित्य के क्रोध को बढ़ा दिया था। उनका पट्टमहादेवी शान्तला : भाग टो :: 415
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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