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________________ सभी को विदित ही था कि पट्टमहादेवी सभी बातों में निष्णात हैं। अत: 11 नया कार्यक्रम शुरू हुआ । सभी मन्त्रालोचना सभाओं में वह उपस्थित रहा करती थीं। उपस्थित रहने पर भी वार्ता में विशेष भाग नहीं लेती थीं। बहुत आवश्यक प्रतीत होने पर अपनी राय बता देतीं। इस मन्त्रणा सभा में भी वे उपस्थित रहीं। राज्य के खजाने को समृद्ध बनाने के विषय में सभी ने अपनी-अपनी सूझ-चूहा के अनुसार विचार व्यक्त किये। शान्तलदेवी ने सलाह दी, ''कर वसूल करनेवाले बड़े अधिकारियों को चाहिए कि वे कार्यक्रम के अनुसार उगाही करें। कई एक बार सुस्ती के कारण कर संग्रह नहीं भी हुरा करता है। राष्ट्र की सम्पत्ति का संग्रह मूलतः दो तरह से किया जाता हैं। एक-धन के रूप में वसूला जानेवाला कर, फुटकर वसूल किये जानेवाले छोटे-मोटे कर तथा अन्च छटपट कर। दूसरा वह जो धान्य के रूप में उगाहा जाता है। धान्य के रूप में उगाहा जानेवाला कर उस प्रदेश या ग्राम में संगृहीत होकर राष्ट्र के भण्डार में रक्षित रहता है। पटवारी और हेग्गड़े को तरीके से यथासमय मंग्रह करना चाहिए। अभी जैसा है, धान्य जो कर के रूप में संग्रह किया जाता है वह आमतौर पर एक रूप है। सिंचाई को व्यवस्था से पैदा होनबाली फ़सल और बारिश पर निभर होकर पैदा होनवानी फसल-इन दोनों में कोई फ़क नहीं किया जा रहा है। इन दोनों को पृथक् मानना हितकर है। मैं चाहती हूँ कि अधिक उत्पादन करनेवालों से ज़्यादा वसूला जाय। हाँ, इस बात का खयाल अवश्य रखा जाय कि उनकी आवश्यकताओं में कमी न पड़े और उनके आर्थिक जीवन में अस्त-व्यस्तता न आने पाग । तरी फ़सल का एक तिहाई और अन्य फ़सलों में पांचवां हिस्सा वसूला जा सकता है।" सुरिंगे नागिदेवण्णा ने कहा, "अन्य बड़े धोक व्यापार पर अधिक कर लगाना अच्छा होगा, क्योंकि अब राष्ट्र के खजाने में धन संग्रह होना जरूरी है।" इस समालोचना सभा में भाग लेने के लिए ही वह यादवपुर से आये थे। बिट्टिदेव ने सूचित किया, ''यह भी किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, काछ उद्योग ऐसे भी हैं जिन पर कर नहीं लगा है। ऐसे उद्योग कौन-कौन हैं, उनसे उत्पन्न आय का परिमाण कितना है, कितना कर लगाया जा सकता है, आदि बातों पर भी विचार किया जा सकता है।" शान्तलदेवी ने बताया, "हमारे समाज ने बहुपली प्रथा को स्वीकार किया है। अगर मुझे स्वतन्त्रता मिले तो मैं इसे हटा देना चाहती हूँ क्योंकि यह उन्नत संस्कृति का प्रतीक नहीं। यह एक सामाजिक कलंक है । वेश्यावृत्ति भी इसी तरह से एक सामाजिक कलंक है। बहुपत्नीत्व कलंक के साथ इस वेश्यावृत्ति के कलंक को भी समाज ने आत्मसात् कर लिया है। इन दोनों को मिटाने के लिए कुछ करना होगा। इस बहुपत्नीत्व और वेश्यावृत्ति पर अधिक रकम कर के रूप में लाद पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 11
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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