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________________ बनाया। राष्ट्ररक्षा एवं उसे विस्तृत करने की दृष्टि से भी यह बहुत जरूरी काम हो गया। माचरण-दण्डनाध, डाकरस दण्डनाथ और सिंगिमय्या की पृथक्-पृथक् देखरेख में सैन्यशिक्षण नियोजित रीति से व्यवस्थित हुआ। राष्ट्र के युवकों के अलग-अलग जत्थे बनाये गये और क्रमबद्ध शिक्षण दिया जाने लगा। प्रत्येक दण्डनाथ के अधीन कई गुल्मपति ध। चुछ प्रधान ममें के लिए, उन स्थानों की आवश्यकताओं के अनुसार कुछ सैनिकों को विशिष्ट शिक्षण देना आवश्यक था। आम तौर पर निष्ठावान परिवारों से चुने हुए युवकों को ही विशिष्ट स्थान देने की परिपाटी रहीं आयी। प्रधान गंगग़ज के बेटे एचिराज, घोप्पदेव; डाकरस के बेटे मरियाने और पन्त, चिण्णम दण्डनाथ का बेटा बिट्टिगा --इन लोगों को इस विशिष्ट वर्ग के लिए तैयार करने की व्यवस्था की गयी। सैनिक शिक्षण देने में डाकरस दण्डनाथ निपात थे। इसलिए इन पांचों को शिक्षित करने का पापिय उसे को सौंपा गया। इनमें सबसे बड़ा एचिराज और सबसे छोटा विट्टिगा ही रहे। उम्र में अन्तर रहने पर भी इनमें क्षात्रबुद्धि रक्तगत हाकर रही और इमकी बुद्धिमत्ता तथ! दक्षता को विकसित करने में यह सहायक रही। कहा जा सकता है कि इनमें बिट्टिगा का हस्तकौशल उम्र के ख्याल से बहुत बढ़ा-चढ़ा था। कन्तिदेवी की इच्छा के अनुसार, स्त्री शिक्षण की व्यवस्था भी छोटे प्रमाण में शुरू कर दी गयी थी। राजधानी में गजमहल के अहाते में ही एक वर्ग संगटित हुआ। इसमें राजमहल के निकटवती परिवारों की बालाएँ ही थीं। राजधानी के किसी भी परिवार की बालिकाओं के शिक्षण के लिए राजधानी के बीचोंबीच एक पृथक वर्ग संगठित किया गया था। राजमहल के अहाले के अन्दर संगठित वर्ग की शिक्षिका स्वयं पट्टमहादेवी ही धनौं। उन्होंने जिन अलग-अलग विषयों में पाण्डित्य प्राप्त किया था, उनमें केवल शस्त्र-विद्या को छोड़कर, शंष सभी याने संगीत, नृत्य, साहित्य, इतिहास आदि को स्वयं पढ़ाने का दायित्व अपने ऊपर लिया। उच्च स्तर के लोग पढ़ाएँ तो उसका विशेष मूल्य होता है न? स्वयं कन्तिदेवी ही पढ़ाती तो उसका मूल्य क्या होता सो कहा नहीं जा सकता। अब जब पट्टमहादेवी ही शिक्षा दे रही हैं तो कहना ही क्या? इस तरह स्त्री-विद्याभ्यास विशिष्ट और परिष्कृत रोति से आरम्भ हुआ। परन्तु गत दो युद्धों के कारण राष्ट्र की अपार सम्पत्ति का अधिक व्यय हो गया था। जग्गदेव का खजाना हस्तगत हुआ धा तो भी उसका बहुत बड़ा हिस्सा युद्ध में मृत लोगों के परिवारों में और अविस्मरणीय सेवा करनेवाले जीवित सैनिकों में बाँट दिया गया था। अर्थशक्ति के बिना आयोजित कोई योजना सफल नहीं हो सकेगी, यह बात राजकार्य-निर्वाहक विभाग को विदित ही थी। इस विषय में विचार-विमर्श करने के लिए एक समा आयोजित हुई। यह तो 400 :: पट्टपहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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