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________________ जीवन स्वर्ग-सा लग रहा था। परन्तु पालदेवी को याद नहीं सूझा कि बल्लाल के लिए यह जीवन नरक बन गया है। समय सरकता रहा। दुर्भाग्यवश बोपदेवी की बेटी बीमार हो गयी और उसी में इहलीला समाप्त कर चल बसी। तब भी पद्मलदेवी के मन में यह विचार नहीं आया कि उसे राजधानी में बुलाकर कुछ सान्त्वना देवें। महाराज बल्लाल पट्टमहादेवी और राजकुमार के साथ वहाँ गये जहाँ बोप्पदेवी थी और उसे देख आये। चामलदेवी को अपनी दीदी (पद्मला) का यह व्यवहार बहुत बुरा लगा। उसे लग रहा था कि वह दुःखी बहिन के दुःख में सहभागिनी होने नहीं, बल्कि अपना लड़का दिखाकर उसे चिढ़ाने आयी है। बात कुछ कड़वी थी पर थी स्पष्ट ।। बोप्पदेवी प्रतिक्रियात्मक भावना में बोली, “भगवान अन्धा नहीं। जो नमक खाते हैं उन्हें पानी पीना ही पड़ेगा।" चार-छ: साल पुर गो : जापतली और बोगटेनी दोनों राजधानी में लौट आयीं। ऐसा दिखता था कि सब-कुछ शान्ति और सन्तोष के साथ चल रहा है। महामातृश्री एचलदेवी भगवान से यही प्रार्थना कर रही थीं : “शान्तिमय वातावरण के रहते हुए, हे भगवान मुझे दुनिया से उठा लो।" परन्तु भगवान ने उनकी विनती सुनी ही नहीं। भगवान की रीति निराली है। वह किसी की समझ में नहीं आती। अपनी इच्छा के अनुसार काम हो गया तो कहेंगे कि ईश्वर की कृपा हुई । इच्छानुसार काम न हुआ तो कहेंगे कि पुराकृत कर्म का फल है। गुस्सा आ गया तो कह बैठते हैं कि भगवान अन्धा हो गया है। परन्तु भगवान न तो आसक्त है, न अनासक्त ही। सब-कुछ पहले से नियोजित हैं, यों नहीं समझते। इस दशा में, एक दिन राजकुमार नरसिंह शाम को खेल रहा था। अचानक उसने कहा कि गले में दर्द हो रहा है। तुरन्त बैंथजी को बुलाया गया। औषध-उपचार शुरू हुआ। परन्तु कुछ सफलता नहीं मिली। वह गण्डमाल रोग बालक राजकुमार नरसिंह को दुनिया से उठा ले गया। पद्मलदेवी इधर सिहिनी बन बैठी । एक तरह से अशक्त बल्लाल को अकेले ही इसके सब तरह के उत्पातों को सहना पड़ता था। बों तो राजकुमार की मृत्यु सहज ही बीमारी के कारण हुई थी, परन्तु पालदेवी समझती थी कि इसमें किसी का हाथ है। साथ ही, इसके प्रतिकार करने की उसमें शक्ति न रही। वह सोचती कि अधिकार सूत्र मेरे अपने ही हाथ होता तो अच्छा था। उसने यह निर्णय कर • लिया कि फिर एक दूसरा बच्चा जन्मे। इसके लिए वह कोशिश करने लगी। इस प्रयत्न का प्रभाव भी शीघ्र देखने को मिला। वैद्यजी को फिर से राजमहल पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 977
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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