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________________ "माँ, मन को आयात लगनेवाला कोई शब्द न करें-बैद्यजी ने यही कहा था न? घण्टी किसने बजायौ?" विट्टिदेव ने पूछा । मैंने ही बजायी, छोटे अय्याजी। तुम्हारी इस परमहादेवो को उनके प्रकोष्ट में छोड़ आने की व्यवस्था करो।" एचलदेवी ने कहा। "पट्टमहादेवा ! कहाँ है वह? उसका गला घोंट दूंगा।' चल्लाल गरजा।। पालदेवी थरघर कांप उठी । "साय: भगवान मरी यह दशा: मेग जीना व्यर्थ है।" कहती हुई वह बाहर चली गयी। लसकं पीछे ही बिादेव निकले। वह अपने प्रकोष्ठ में गयी और धड़ाम से किवाड़, बन्द कर लिये। विष्टिदेव ने नौकरों से कहा, ''सन्निधान की अम्वम्यता के कारण पट्टमहादेवी का मन बहुत विचलित हुआ हैं। यह कुछ कर न बैठे। होशियार रहना, निगरानी रखं रहना। फिर वह बल्लाल के शयन-कक्ष में चले गचे। "हो, गनी को बुलवाएंगे अप्पाजी, वह मायक्रे गयी हैं।'' वाचलदेवी बल्लाल से कह रही थीं। "हाँ ! न पहावी - आम माविन हो चुकं हैं न : आन दें, धीरे-स आएँ ।' अल्लात ने कहा । वैद्यजी आये। उन्हें बाहर ले जाकर चलदेवी ने जो हुआ सब कह सुनाया। ''अधको यह बीमारी उन्माद की आर न बढ़े। यदि वात और बढ़ती तो उसका परिणाम बहुत बुग होता। मेरे मन में यह शंका रही कि यह बीमारी हैं, या ग्रहवाधा। अब यह निश्चित हो गया । वह बीमारी ही है। जवान बेकाबू हो तो ऐसे मांगों की बातों से शस्त्रावात से भी अधिक गहरा बान दिमाग पर हो जाता है। पहले से ही मेरी कुछ ऐसी शंका रही। अब निश्चित हो गया। अन्न तक की चिकित्सा और परीक्षा से कोई अभिलपित फल न मिला तो भी कोई चिन्ता नहीं। इरा आगामी ज्येष्ठ पार्णमा तक सन्निधान को स्वस्थ बना दूंगा। अगर ऐसा न कर सका तो इस बंधक वृत्ति को ही छोड़ देंगा। वैद्य को आरोग्य की रक्षा और प्राणां की रक्षा करनी ही होगी। यह कभी प्राणभक्षक नहीं बन सकेगा। चाहे कोई भी नाखुश हो, किसी को उनके प्रकोष्ट में आने नहीं देना चाहिए। नौकरों की भी जरूरत नहीं। मैं यहीं रह जाऊंगा। दवा की ज़रूरत होने पर खुद जाऊँगा और से जाऊंगा : में, गजा और आप-हम तीनों के सिवाय अन्च कोई इस प्रकाप्ट में न आने पाए।" पण्डितजी ने स्पष्ट कर दिया। बंसी ही व्यवस्था को गयी। पोण्डतजी न बड़ी निष्ठा के साथ नियमानुसार दवा दी, चिकित्सा और उपचार से सन्निधान को स्वम्ध बनाकर, उन्होंने अपनी बात रखी। तीन पखवागें सं अधिक समय लगा; फिर भी पण्डितजी ने महागज का नारोग बनाकर अपनी प्रतिज्ञा को बनाये रखा। मृतप्राय बल्लाल जी उठे। sti.l :: पहम देती शान्तना : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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