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________________ मुझे अब भी मालूम नहीं कि इसे कैसे मालूम हुआ कि वह जहर मिला प्रसाद था। अब मालूम तो हो ही गया था। कम-से-कम मेरा पता तो न लगे, इसलिए मैंने इस पर खुखरी फेंकी कि इसे मार ही डालूँ। मैं निश्चिन्त हो गया था कि यह मर गया। परन्तु अब सब बदल गया। मुझे कोई दुःख नहीं। मैं समझँगा कि इन महोदय ने मेरा जो अपमान किया था उसका मैंने बदला ले लिया।" उस अपराधी ने कहा । • इसके लिए क्या दण्ड होगा, जानते हो? बाल ने पूछा। -- मैं अपने इस विफल जीवन को खुद भी नहीं चाहता । दण्ड कुछ भी हो मेरे लिए सब बराबर हैं। सूली पर चढ़ा दें, परन्तु केवल मुझे ही मूली पर चढ़ाएँ । बाक़ी इन लोगों को इस दाई की और दाम को क्षमा कर दें। वे मेरे हाथ की कठपुतलियाँ बनकर रहीं। इनको अपने जीवन में जो दैहिक सुख कभी न मिला था, उसे मुझसे पाया और जैसा मैं नचाता रहा वैसी ये नाचती रहीं । यह मेरे इस अन्तिम समय की प्रार्थना है । परन्तु एक बात मुझे मालूम नहीं पड़ी कि मैंने जव इससे कड़ा नहीं था कि मैं जहर मिला प्रसाद दे रहा हूँ तो इसने कैसे जाना? मरने से पहले यह मालूम हो जाय तो आनन्द के साथ प्राण त्याग हैं।" "तुम केवल अपने बारे में पूछ सकते हो। दूसरों के बारे में जो प्रार्थना करते हो तो हम नहीं मानेंगे। जिस-जिसने जैसा अपराध किया है उस अपराध कं अनुसार उसे दण्ड भोगना ही पड़ेगा। पांच संसदीय मन्त्रिमण्डल दण्ड का निर्णय करेगा। अभी इन तीनों को वन्धन में रखा जाय।" बल्लाल ने आदेश दिया । सिपाहियों ने उन लोगों को ले जाकर जेल में बन्द कर दिया मरियाने दण्डनायक सिर झुकाये बैठे रहे। रानियाँ भी वैसे ही बेठी रहीं । "तो यह व्यक्ति कौन है जिसने महाराज और राजा के प्राणों की रक्षा का महान कार्य करके पोय्सल राजवंश को जीवनदान दिया है ? विजयोत्सव के सन्दर्भ में सन्निधान के साथ ही ये पधारते तो इनका सार्वजनिकों के सामने वीरांचित सम्मान भी कर सकते थे।" शान्तलदेवी ने कहा । "हमने भी उनसे कुछ पूछताछ नहीं की। हम सुरक्षित हैं। उन्हीं की सूचना से हम विजयी हुए हैं, इतना मात्र हमने उनसे कहा था। साथ में आते थे, मगर रास्ते में भयंकर बुखार चढ़ने से इन्हें मायण के साथ छोड़कर हम इतने लोग निर्दिष्ट समय पर आ पहुंचे। ये विश्रान्ति के बाद बुखार से मुक्त होकर अब आये हैं। हमें भी इनके बारे में जानने का कुतूहल है । आज इस समय यहाँ इनके आने से एक नयी वात प्रकट हुई। यहाँ राजमहल में बाचम के नाम से जो काम कर रहा था वह वही आचण हैं जिसने हमारे प्राणहरण का प्रयत्न किया था, इसका प्रमाण मिल गया। अगर ये हमसे बिछुड़ जाते तो इस आचण के कार्यों का पूरा पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो: 2343
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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