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________________ सकता है कि यह कौन है। उसे मालूम है कि मैं कौन हूँ। देखिए, उसकी मुखाकृति मुझे देखते ही कैसी बन गयी है। मुझे देख उसे डर लग रहा होगा, क्योंकि यहाँ मैं अकेला इसे जानता हूँ। वैसे यह मुझे जानता है फिर भी मेरा पूरा नहीं है। यह सिने शिवरात्रि के दिन सन्निधान और बिट्टिदेवरस जी को प्रसाद कहकर जहर दिया था ।" मायण के साथ आये व्यक्ति ने कहा । "सच ! वह पुजारी के वेश में न था? यह बढ़ी हुई दाढ़ी थी. इसकी याद नहीं ।" बिट्टिदेव ने कहा । "वह बनावटी है। पकड़कर खींच लें तो निकल आएगी ।" आगन्तुक ने 1 कहा। नौकर से यह काम कराया गया। पचलदेवी की चपत से अँगूठी लगकर गाल पर जो घाव हुआ था, उसका निशान भी दीख पड़ा। वह निशान छिपाने की उसने बहुत कोशिश की। उसके केश पकड़कर, उस खुले सपाट मुख को और गाल पर के उस निशान को दिखाया गया। " अब तो मान लोगे कि तुम आचण ही हो?" बल्लाल ने पूछा । उसके लिए अब कोई दूसरा चारा नहीं रह गया था । "यह सब तुमने क्यों किया ?” "पेट की जलन से अपमान का बदला लेने के लिए।" "जिन्होंने अपमान किया था उनसे बदला क्यों नहीं लिया "जब तक मैं जिन्दा हूँ तब तक यह मुझे जलाता ही रहेगा। जैसे मेरा दिल जलता है वैसे इस बड़े का भी दिल जलता रहे और तड़पता रहे यही मैं देखना चाहता था।" " लेकिन जिन्होंने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा, उस पर तुमने यह प्रयोग क्यों किया ? "मैं क्या करूँ? उन्होंने इस प्रतिष्ठित के यहाँ जन्म लिया। उस वंश का नामोनिशान मिटाना हो तो यहीं एक आसान मार्ग है- महाराज का नाम ही इस दुनिया से मिट जाना । तभी गर्भस्थ अंकुर को दवा देनी चाही थी सो इसी संकल्प के साथ यहाँ आया था। पर बाद में महाराज को ही ख़त्म कर दूँ तो दण्डनायक की इन बेटियों के लिए बच्चे ही कैसे होंगे? इसलिए जहर देने की बात सोची थी।" "बिट्टिदेवरस ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था ? " "कुछ भी नहीं। इसीलिए मैंने उन्हें केवल प्रसाद ही दिया था। जहर केवल महाराज को हो दिया था। जहर खाने से महाराज को बचा लिया इस आदमी ने । 942 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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