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________________ अब पछताने से क्या? मुझसे उसका विवाह कर दें।' मैंने कहा, 'तुमसे शादी कर दूं तो वह कुएँ में कूदकर जान दे देगी।' उसने कहा, 'वही हो, ऐसा कुछ आग्रह नहीं। आपकी लड़कियों में से कोई भी सही। आपकी लड़की से विवाह होने पर मेरी भी कष्ट हस्ती-हैसियत बढ़ सकती है-यही बात है। वात वहाँ तक बढ़ गयी। 'मेरी और तुम्हारी समानता कैसे हो सकती है: तुम अपनी हैसियत की किसी और से शादी कर लो।' 'आपकी योग्यता को सभी जानते हैं न? विनयादित्य महाराज ने आपको इतना ऊपर उठाया। आप भी बड़े आदमी बने। क्या मैं आपकी दृष्टि में छोटा है। उसने मेरे मुंह पर सा ! मैं स्पष्ट कह दिया, 'मैं तुम्हारे हाथ में अपनी लड़की को डालकर तुम्हारे वंश को बढ़ाने का मौका नहीं दूंगा। चाहे मैं अपनी लड़की को भगवान के नाम पर छोड़ दूं, पर यह हो नहीं सकेगा। अब तुम तुरन्त यहाँ से निकल जाओ, एक क्षण-भर के लिए भी यहाँ नहीं ठहरना। ठहरोगे तो तुम्हारी जान नहीं बचेगी', कहते हए मैंने अपनी कमर में खोसी हुई खुखरी को हाथ में निकाल लिया था। कभी मुझे इतना गुस्सा नहीं आया था। वह मुझे देखते हुए इर से पीछे हटने लगा। मैंने उसे चेतावनी दी, फिर कभी इस महल में कदम रखा तो तुम्हारी दशा क्या होगी -कह नहीं सकता।' मैंने इस आदमी पर नज़र रखने का आदेश दिया था। बाद में मैंने सुना, यह कि 'मैं इनके बराबर कैसे नहीं हूँ, दिखा दूँगा कि बराबर का हूँ या नहीं। देखूगा कि इस वंश की वृद्धि कैसे होती है:' कहता फिरता था। यही उसकी वरावरी को प्रदर्शित करने की रीति मालूम पड़ती है? अपनी इच्छा पूर्ण न हो सकने के कारण इस तरह वंश के अंकुर का नाश कर देने का प्रयत्न इसने किया होगा-यह विश्वास किया जा सकता है। यह महाधूर्त है, कुछ भी कर सकता है। ऐसे हीन मनुष्य को अपनी बराबरी का कैसे मान सकते हैं? यह अपराधी है, इसमें कोई सन्देह ही नहीं।" मरिवाने ने स्पष्ट किया। "आपको और कुछ कहना है, हेग्गड़ेजी?'' बल्लाल ने पूछा। "ज्यादा कुछ नहीं। ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्होंने इसकी यह बात सुनी है कि 'वंश को बढ़ने न दूंगा।' चाहें तो उन्हें बुलवा लेता हूँ।" मारसिंगच्या ने कहा। "अगर वह महादण्डनायक जी की बात को अस्वीकार करे तो बुलवाना ही पड़ेगा। उससे पूछिए क्या कहता है।" बल्लाल ने आदेश दिया। "उन्होंने जो निस्सा सुनाया बह सच हो सकता है। अपने गत-जीवन को भूलकर अपने पद-गौरव की साक्षी के रूप में अपनी रामकहानी उन्होंने साफ़-साफ़ बता दी। उन्होंने जिस आचण की बात कही उससे ये टीक बरतते तो वह ऐसी बात कहता या नहीं, कौन बता सकता है? गुस्सा आया, सहज ही हैं, कह दिया और चला गया। इस घटना को मेरे ऊपर क्यों थोपा जा रहा है? मैं आचण नहीं 340 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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