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"आपकी दृष्टि से बचकर निकलता रहा होगा। भीड़ में यह सब सहज है । अलावा इसके, उस समय आप बहुत दिन यहाँ ठहरे भी नहीं।" गंगराज ने कहा । "ठीक, अब सन्निधान के समक्ष निवेदन करूँगा।” मरियाने ने आचण की तरफ़ एक तेज दृष्टि डाली और महाराज की ओर मुड़कर बोले, "यह एक बार यह कहकर कि हमारा दूर का रिश्तेदार है, हमारे यहाँ आकर ठहरा। यह बहुत पुरानी बात है। मुझे याद पड़ता है कि शायद सन्निधान के उपनयन के अवसर की रही होगी । इसने कुछ काम माँगा। मैंने कहा, 'देखेंगे, फ़िलहाल घर पर कोई काम करते रहो ।' घर पर काम करता हुआ अभी थोड़े दिन ही बीते थे तब इसने हमारी बड़ी लड़की का पीछा करना, और उसे बुरी नजर से देखना शुरू किया । एक दिन लड़की फुलबारी में थी तो इसने उसका आँचल पकड़कर खींचना बाहा । इस बात को लड़की ने अपनी माँ से कहा। जब इसने आँचल खींचा तो वह गुस्से में हो आयी और उसको खूब जोर का एक चाँटा जड़ दिया । अष्टकोण आकृतिवाली अंगूठी, जो उसकी उँगली में थी, इस आदमी के गाल पर लगी तो वह छिल गया और चाव से खून बह गया था। आज भी उस घाव का चिह्न इस आदमी के गाल पर हैं। शायद इतना गुस्सा आया कि यह सह न सकी, इसलिए ऐसा चाँटा मेरी इस बड़ी लड़की ने मारा था। घाव की चिकित्सा करवाकर उसे राजधानी से निकाल दिया गया था। एक-दो साल बाद वह फिर आया। अब हालत अनुकूल है पहले कभी बनन में ग़लती की उसे क्षमा कर दें और आपकी लड़की से मेरा विवाह कर मेरे वंश को बढ़ाने में सहायता करें। उसने मुझसे पूछा । 'ऐसी बात ही मत कहो । बड़ी लड़की का विवाह तो निश्चित हो ही गया हैं ।' मैंने भलमनसाहत से कहा। फिर उसने पूछा, किसके साथ?' ती मैंने कहा, 'भावी पोय्सल महाराज बल्लाल राजकुमार के साथ।' तब मुझे प्रकारान्तर से यह मालूम हुआ था कि सन्निधान ने मेरी लड़की को वचन दिया है। यह सुनकर वह चुपचाप चला गया। यों तो वह आया ही था तो मैंने सहपंक्ति खिला-पिलाकर भेज दिया था। उसके चले जाने के बाद मेरी बड़ी लड़की ने आकर कहा, 'वह महाधूर्त व्यक्ति हैं, इसकी दृष्टि बहुत बुरी है। इसे कभी घर पर आने न दीजिए। यहीं इस घटना का अन्त हो गया, मैं यही समझ रहा था। इस बीच मेरी पत्नी की जल्दबाजी और बेवक़ूफ़ी के कारण प्रभुजी की अकालमृत्यु हो गयी, इससे आन्तरिक असमाधान की स्थितियों उत्पन्न हो गयीं और विवाह की बात ही स्थगित हो गयी। मेरी बेटी ने स्पष्ट कह दिया था कि यदि बल्लालकुमार से उसका विवाह नहीं हुआ तो वह कुएँ-तालाब में गिरकर जान दे देगी। हमें कुछ कह सकने की स्थिति नहीं रही। उस हालत में यह आदमी फिर आया और बोला, 'हुई न शादी, जिसे पा नहीं सकते उसे पाने की कोशिश की, न पा सके;
पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो : 339