SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आनेवाली पीढ़ियों को एक दिशा-निर्देश दिया है। हम सभी को इसके लिए उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। जैसा उन्होंने कहा, अपने खुद के विषय में, उनका निर्णय सबके लिए मान्य है। इस निर्णय को नमक-मिर्च लगाकर तरह-तरह की व्याख्या करना गलत होगा। उनकी बात पर हमें विश्वास करना चाहिए।" शान्तलदेवी बोली। परन्तु बात यहीं नहीं सकी। कुछ आगे बढ़ गयी। ''मुझे भी इसमें घसीटा गया है; मैं न गर्भवती हूँ, न पट्टमहादेवी ही; मेरा जन्मदिन भी समीप में नहीं है। तब फिर मुझे भी यो घसीटना उचित है? मैं सामने ही सवाल कर रही हूँ।'' चामलदेवी ने कहा। "अच्छा, अब इसी बात को लें; आप और छोटी रानी के बीच कर बातचीत चनी होगी और यह खबर पटरानी जी को भी लग गयी होगी। इस कारण से यह विवाद पैदा हो गया होगा। क्या आपके और छोटी रानी के बीच कुछ बातचीत हुई?" शान्तलदेवी ने चामलदेवी से पूछा। "मैंने भी पाँच-छह दिन पहले सीमन्न-संस्कार के बारे में बोप्पि से बातचीत की तो उसने बताया कि जव महाराज नहीं हैं तब धूमधाम क्यों: निमित्तमात्र के लिए कोई विधि सम्पन्न करनी है तो कर ली जाय। यह धूमधाम से मनाने का समय नहीं हैं। मुझे भी उसका कहना ठीक लगा। मैंने कहा यही ठीक है। इसके सिवा और कोई बात नहीं हुई। ऐसी हालत में दूसरी बातों के लिए जगह ही कहाँ है?" चामलदेवी ने कहा। इस सबसे यही सारांश निकलता है कि आपकी बातचीत को जिसने पटरानी जी से कहा है उसने नमक-मिर्च लगाकर कहा है। ऐसे ही पटरानी जी ने जो बातें नहीं कहीं उनको भी मिलाकर छोटी रानी को भरा गया है। इस आपसी विवाद की जड़ ये वार्तावाहक हैं। इस विषय को इन्हीं चुगलखोरों ने यह रूप दिया है। इन बातों पर अवलम्बित होना कहाँ तक ठीक हो सकता है? हमें तो राजमहल की एकता को बनाये रखने के लिए जी-जान से प्रयल करना चाहिए। हमारे मनों को परिवर्तित करनेवाले इन लोगों की बातों पर चलना-बरतना उचित होगा? ऐसा करना भावी सर्वनाश के लिए नान्दी नहीं होगा? ऐसे काम के लिए हमें सहायक नहीं बनना है। इस तरह की भ्रान्ति पैदा करनेवालों का निश्चित ही कोई उद्देश्य होगा। किसने ऐसा समाचार फैलाकर गलतफहमी पैदा की है-यह अब तक आपको भान हो गया हो, तो भी उसका लक्ष्य क्या है, इसका पता जब तक न लग जाग तब तक हमें मौन रहना चाहिए, यही अच्छा है।" शान्तलदेवी ने समझाया। विवाद से कुछ विरसता उत्पन्न हो जाने पर भी शान्तलदेवी की विवेकयुक्त, 918 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy