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"से अविश्वस्त व्यक्ति को यहाँ लक बुला लाना सम्भव हो सकेगा वह अच्छा आदमी है, काम भी ठीक-ठीक करेगा। दो ही दिनों में जान जाओंगी कि वह कैसा हैं।" दामच्चे ने दिलासा दी। उसने कह तो दिया, मगर वह मन-ही-मन उसे गाली देती और कुढ़ती रही-"मैं उस कम्बख्त से कहती रहती हूँ कि सभी जगह बुरी दृष्टि से न देखा कर-वह मानता ही नहीं। सजग रहना तो जानता ही नहीं।" यो मन-ही-मन दोहराती दामब्या अपने काम पर चली गयी।
प्रधानजी के पीछे-पीछे जाना और बाचमा को साथ ले जाकर पट्टमहादा से मुलाकात कराना आदि दामञ्चे के सभी कार्यों की खबर पालञ्चे ने शान्तलदेवी को दी।
शान्तलदेवी ने इन दोनों पर निगरानी रखे रहने को गालब्बे से कहा।
तभी पिता के घर से लेंका एक चिट्ठी लेकर आया और उसे शान्तलदेवी को दी। शान्तलदेवी ने चिट्ठी पढ़ी। उसमें ये ही सब बातें थीं जो रानी पद्यलदेवी ने प्रधानजी और दण्डनाथ माचण से कही थीं। पढ़कर उन्हें बहुत दुःख हुआ। भाई
और मामा की बात का भी कोई मूल्य न रहा! व्यक्ति को इतने निम्न स्तर तक नहीं उतरना चाहिए। पटरानी के दिमाग़ में किसने ऐसे विचार भरे? इन बातों का पता लगाना ही होगा। ये बातें राजमहल के लोगों के दिमागों में कहीं घुस ठी तो राजपरिवार ही ख़त्म हो जाएगा। बुजुर्गों के प्रति अनादर और ऊपर से उनके पीछे पता लगाने के लिए कि वे कहाँ आते-जाते हैं, नौकरों को लगा दें? यह कैसा यवहार? एक तो करेला तिस पर नीम चढ़ा! प्रधानजी पर विश्वास न करने के माने हैं अपने आप पर विश्वास न रखना। इससे बढ़कर मूर्खता और क्या हो सकती है। किसी भी तरह से सही, वहाँ विवेक पैदा करना ही होगा-शान्तलदेवी ने निश्चय किया।
इसके लिए क्या करना होगा-यह सोचते-करते ही तीन-चार दिन बीत गये।
पश्चात् एक दिन, भोजन के समय शान्तलदेवी ने यात छेड़ी। उन्होंने कहा, "अभी रानी बोप्मदेवी के छह मास लगे हैं, प्रथप गर्भ है। उचित रीति से सीमन्त संस्कार को सम्पन्न करना होगा। महामातृश्री होती तो चे दिशादर्शन कर देती और बतार्ती कि इसे कैसे मनाना है। इस वक्त वे यहीं नहीं हैं। अतः सारी जिम्मेदारी पटरानी जी पर आ पड़ी है।"
"तुम्हारा कहना ठीक है। परन्तु यहाँ की हालत ऐसी है कि मैं इस कार्य में हाथ नहीं डाल सकतीं। यह विषय उससे सम्बन्धित है। सो जैसा चाहे धूमधाम से मनाने की व्यवस्था करा ले। मैं उसकी तरह दूसरों की बातों में हस्तक्षेप नहीं करती।" पालदेवी ने यो निर्धार के साथ कह दिया।
"मैंने किसके विषय में हस्तक्षेप किया है? ऐसा कहना बड़ों को शोभा नहीं
3]6 :: पद्रमहादेवी शान्तला : भाग दो