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________________ दोरसमुद्र के राजमहल का जब विस्तार किया जा रहा था तब वहाँ की विशाल और मनोज्ञ फुलवारी में एक सन्दर केलिगृह का भी निर्माण किया गया था। महाराज ही यहां जब न रहे तो इस केलिगृह का उपयोग भी कौन करे? बाग़वानी में दिलचस्पी होने के कारण शान्तलदेवी एक दिन शाम को गालब्बे और बिट्टिगा को साथ लेकर उस उद्यान में गयीं। जाने पर उन्हें उस केलिगृह के अन्दर से किसी के हँसने की आवाज सुनाई पड़ी। शान्तलदेवी ने कहा, "गालब्बे, बिट्टिगा को मेरे हाथ में दे दो, मैं वहाँ उस चमेली के पास रहूँगी। महाराज के उस केलिगृह में कौन है-जारा देख के आ।" गालब्बे धीरे से उस जगह पहुँची। वहाँ उसे स्त्री-पुरुष दोनों की आवाज सुनाई पड़ी। ____केलिगृह में स्त्री कह रही थी : “तुम बहुत बुरे हो, तुमने इस तरह चुलहबाती कर गुदगुदाया कि इतनी तेज हँसी आ गयी। कोई सुन ले तो? महाराज राजधानी में नहीं हैं। हमें यह मौके की जगह मिल गया है। किसी को पता तक न लगे, इस तरह यहाँ हम आते-जाते रहते हैं। यदि कोई महाराज के केलिगृह में हमें देख ले तो हमारी इतिश्वी हो जाएगी।' पुरुष कह रहा था : ''यहाँ अभी कोई भूत भी नहीं फटकेगा। और फिर, इस धूल-भरे पलंग का उपयोग कर हम इसको बरबाद होने से बचा रहे हैं। इसलिए हम जो कर रहे हैं वह अच्छा ही तो कर रहे हैं। मौका मिलता है तो उसका सुख भोगना ही चाहिए। तुम्हें मैं हँसाऊँ और तुम हँसो, तभी सच्चा मज़ा आता है।'' “सो तो ठीक हैं। मैं भी यह चाहती हूँ, परन्तु कोई सुन ले और हम फँस जाएँ तब क्या हाल होगा?" स्त्री की आवाज़ थी। ____ 'यह तो दूर एक कोने में है। यहाँ तक कौन आता हैं, छोड़ी, रहने टो।...अच्छा फिर आगे क्या हुआ?" । "क्या? कौन-सी बात?" । "वही, उस दिन कहा न, रानियों में अनबन है?" ''धत् तेरे की, संग-सुख की चाह से चोरी-छुपे आयी तो फिर ये अनबन की बात क्यों? सो तो बहुत है पर इस समय मत पूछो। अंधेरा होने से पहले मुझे घर पहुंचना है।" "तुम्हारा पति तो है नहीं, वह तो युद्ध में गया है। उसके जिन्दा लौटने तक..." ''पोसी बुरी बात मत कहो। वह जीवित बना रहे तभी कुशल है।" "तुम पुरुष लोग क्या जानो: सुख पाना मात्र जानते हो।" "क्या सुख अकेले को ही मिलता है।" 810 :: पट्टमहादेवी शान्तला : 'भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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