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________________ शान्तलदेवी के अभिप्राय के अनुसार मायण मारसिंगय्या के पास नहीं गया। इसलिए दूसरे ही दिन मारसिंगय्या ने रायण को किक्केरी भेजकर शान्तलदेवी को सूचित का जिला ___शान्तलदेवी ने इतना ही कहा, "ठीक है।" फिर यह बात उसके दिमाग़ में आबी ही नहीं। दिन गुज़रते गये। एक सप्ताह बाद रायण लौटा। उसने अपनी किक्केरी यात्रा का सारा विवरण यों दिया : "सारी किक्केरी को छान डाला। वहाँ किसी को पता तक नहीं कि चट्टलदेवी नामक कोई स्त्री भी है। चट्टलदेवी ने जिसका नाम बताया था उस नामवाली कोई स्त्री किक्केरी में है ही नहीं! दयाफ्त करने पर यही मालूम हुआ कि हाल में उस गाँव में कोई नयी औरत ही नहीं आयी। वहाँ के हेगड़े ने बताया कि मेरे जाने से दो दिन पहले कोई एक व्यक्ति उस स्त्री को ढूँढते आया था तो सारे गाँव में दयाफ्त किया गया था। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया था, इसलिए पूछा कि वह दूसरा आदमी कौन था? उन्होंने कहा, 'उसने अपने को उस औरत का कोई निकट सम्बन्धी बताया था । नाम भी कुछ यताया था पर अब मुझे याद नहीं। वह बहुत जल्दी में था। बहुत उम्र नहीं थी उसकी, यही कोई तीस-पैंतीस का रहा होगा। उसके बाल कुछ लाल मिश्रित काले रंग के थे।' पता नहीं लगा कि वह कौन होगा! मुझे कुछ सूझा भी नहीं, यों ही लौट आया।" यह सुनकर शान्तलदेवी ने उसे भेज दिया और स्वयं सोचती बैठी रहीं : पहले उसकी खोज में जो गया वह मायण ही है; अप्पाजी (पिताजी से भी बिना कहे चला गया है। परन्तु दण्डनाथ जी की आज्ञा के बिना जा भी कैसे सकेगा? उनसे दर्यात करने पर पता लग जाएगा। जब वह वहाँ न मिली तो उसकी खोज में शायद अन्यत्र गया हो; उसे उसकी गतिविधि का अन्दाज कहीं से लगा होगा इसीलिए शायद अभी तक नहीं लौटा। उसके लौटने तक उसका कुछ भी पता नहीं लगेगा। जो भी बात हो, दण्डनाथ जी से दर्याप्त करनी होगी; यों सोचकर शान्तलदेवी ने दण्डनाथ जी के यहाँ खबर भेज दी। मात्रण दण्डनाय ने कहला भेजा-'उसने कहा कि कोई मनौती हैं, वेलुगोल जाना है, लोटने में एक पखवारा लग जाएगा, अनुमति दें। इसलिए उसे अनुमति दी गयी थी।" शान्तलदेवी सोचने लगीं, “चाहा कुछ, हुआ कुछ और ही। अब उपाच ही क्या है।" एक-दो दिन यों ही विचार करते निकल गये। “अब इससे क्या लाभ? पहले तो यह जानना है कि इन रानियों में आपस में यह अनबन क्यों है? इसके पीछे क्या प्रोत्साहित करनेवाले भी कोई हैं? इस बात का पता लगाना ही होगा।" शान्तलदेवी मायके से राजमहल में जब आयी तब गालब्बे को साथ लेती आयी थी। चट्टला का पता न लगने पर, पता लगाने का यह काप इसी को सौंप दिया। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 509
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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