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________________ ''वह मुझमें शूट क्यों कहंगी: मैंने उसकी नानी-दादी के बारे में कोई व्योग नहीं पूछा। कोइ दूर की दादी-नानी हान्न में वहाँ रह रही हो। एक गर वहां हा आना अच्छा है।" शान्तलादेवी ने कहा। मुझसे ज़्यादा, उसके बारे में रानीजी जानती हैं। और किसी से झुट बान्ने ती एक गर क्षमा भी किया जा सकता है। आपसे पैर कह तो महा नहीं जागा । कारण कल और भी होगा। उस औरत के जाने के रास्तं का पता नहीं लग सकेगा। 'भाड़ में जागा वह...'' ___ गायग, तम अब और भी अधिक जन्दबाज्ञ हो गय हो। बिना सोच-समशे हा निणय पर पहुंच जात हो। अभी तम्हें राजमहल का काम करना है। समान लो कि बात से तुम्हाग कोई सम्बन्ध नहीं हैं। उसे हमार साघबरा सही-सलामत आ पहुंचना चाहिए था। वह गजाज्ञा थी। रास्ते में ठहर जाने की अनमान मैन द दी. यह हमारी गलती है। गला के लौटने से पहले न गन ला ग., दाना तान्त किक जाकर उस युला लाओ।" शान्तलदेवी ने कहा।। __ "जमा गनीजी ने कहा, मैं जान्दवाब हैं। मैं वहाँ जा और वह किसी दूसरे भादी के साथ मजे से हंस-वननी दिख गयी तो मुझे गुस्सा आ जाएगा, तय में कल का कछ कर बैट्रगा। इसलिए किसी दूसरे को यह काम करने को कहें और मुझे वर्ग कर दें तो मैं आपका चिरकणी रहूंगा। यह चरणसेवक गनीजी से विनती कला है।'' मायण ने सिर झुका लिया। ___किसी दृसंरक माथ उसे हंसी-खल करना होगा तो यह किक्कंग में रहगी हो क्यों ? इसलिए तम हा आओ। यह बान तुम्हारी पत्नी मे सम्बन्धित है। तुम स्वयं जाओ और मर प्रत्यक्ष देख लो ना तुम्हारे लिए भी यह अच्छा होगा। दूसगं की बातों पर विश्वास करने की ज़रूरत ही न होगी। तुम हो आओ। फिर भी यदि नम्हें कोई सी यात दिखं नो गुम्सा मल करना । वहाँ के हेगड़ेजी को उन सभी के बारे में कहकर पकड़वा देना जिन-जिन पर तहे गस्सा आग। बाद में उन सबको तहकीकात कर लेंगे।" शान्तलदंवों ने कहा। मायण कोई उत्तर दिये बिना मौन खड़ा रहा। "जब भी शंवा कर रहे हो। 'गनाजी के लिग तो जो भी मफ़ेद है वह सब दृध हो लगता है। सफ़ेद दिखनं पर भी वह 'फटा दूध है। उसे भाद में जान दीजिए, गनीजी।" "मेरी समझ में ही नहीं आता कि तुम क्या का हो, मायण । अब लम गामा कह रहे हा! पहले तो जग्गटेब के माथ गद्ध समाप्त होने के बाद, नुमने कहा था कि स्वयं उसके साथ रहकर परिवारी बनकर रहांगे, उसको काई ग़लती नहीं। बेचारी वह खुद चोली थी- 'तुम दूसरी शादी कर लो, सुख से रहा में भ्राता है।' पट्टमहादेवी शान्ताला : भाग दो :: :
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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