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________________ नहीं लेंगे। यह सब विचार कर अपने आगे के कार्यक्रम की एक स्थूल रूपरेखा . शान्तलदेवी ने बनायी। उन्होंने पिताजी से विचार-विमर्श किया। ___ हेग्गड़ेजी को लगा कि राजमहल के भीतर एक गम्भीर और गूढ वातावरण बन गया है। वह सोचने लगे कि निश्चित ही कोई अपने स्वार्थ को साधने की दृष्टि से अन्दर ही अन्दर उकसा रहा होगा और वह यहीं कहीं होगा। यह विचार आते ही उन्होंने निश्चय किया कि शान्तला राजमहल में ही रहे। यो दोरसमुद्र पहुँचने के एक पखवारे के अन्दर वह राजमहल में ही रहने लगा। राजमहल पहुँचने के दो-तीन दिन बाद, एक दिन दण्डनाधिका एचियक्का से रानियों के बीच उत्पन्न इस अनधन के बारे में शान्तलदेवी ने बातचीत की। उन्होंने कहा कि शायद कोई इन रानियों के कान भरकर भड़का रहा हो। ऐसे लोगों का पता लगाना चाहिए। तभी शान्तलदेवी की चट्टला की चाद आ गयी। बोली, "उसे तो अब तक यहाँ पहुँच जाना चाहिए था।" "हाँ तो। उसने कंवल चार दिन अपनी दीदी के यहाँ रहकर लौटने की अनुमति आपसे ली थी और किक्केरी में जा रही। बह होती तो अच्छा था, ऐसी बातों में वह बहुत निपण है। वह इस बात का पता लगा लेती कि राजमहल की कौन दीवार क्या बोल रही है।" एचियरका ने कहा। "ऐसी हालत में उसे बुलाने के लिए कान किसको भेजे? ढ़िया ने कहा होगा कि दो-चार दिन और ठहरकर जाए, इस पर वह ठहर गयो होगी। कल ही किसी को भेजकर बुलवा लेना चाहिए। आदमी भेजने पर एक सप्ताह के अन्दर यहाँ आ पहुंचेगी। अगर अच्छा सवार हो, घोड़ा भी अच्छा हो तो एक ही दिन में वहाँ पहुँचा जा सकता है। किक्करी यहाँ से चार कोस की दूरी पर ही तो हैं न? घोड़े को भी आराम देकर दो दिन के अन्दर पहुंच सकता है।" पिताजी के पास शान्तलदेवी ने यो समाचार भेज दिया। मारसिंगय्या ने आकर शान्तला से सारी परिस्थिति समझी और अपनी सहमति व्यक्त करते हुए कहा, “मायण यहीं है। उसी को भेज देंगे।" "ठीक है। मैं सोच रही थी कि कहीं हमारे रायण, को भेजने को कहें।" शान्तलदेवी ने कहा। "सो भी हो सकता था। लेकिन मायण सारी बातें जानता है।" उसे कहला भेजा गया। मायण के आने पर शान्तलदेवी ने सारी बातें समझा दी। सुनकर मायण ने कहा, "किक्केरी में उसके कोई रिश्तेदार नहीं हैं। उसकी कोई दादी-नानी नहीं जो जीती-जागती है। उसने रानीजी से झूठ कहा है। वह तो उसका जन्मजात स्वभाव है। जनम के साथ आवे गुण मरने पर भी नहीं मिटेंगे।" 5614 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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