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________________ इस बात का डर भी हुआ होगा कि अगर लड़का हुआ तो क्या होगा। इसलिए उन्होंने खुले दिल से आशीवाद भी नहीं दिया। भगवान को जो मरज़ी होगी वही मुझे मिलेगा। उनसे पहले सन्तान पाने की प्रार्थना मैंने भगवान से नहीं की थी। स्वयं भगवान ने मुझ पा : या दिशारी: मायने या आकांक्षा की कि होनेवाली सन्तान लड़का हो। इसमें मेरी क्या ग़लती मुझसे पहले अगर ये ही गर्भवती हो जाती तो क्या कहती : वैसे यदि कहतीं कि लड़का हो और आसीस देती तो उनका क्या बिगड़ जाता? अगर उनके यह कहने पर भी मुझं लड़की होती तो क्या मैं असन्तुष्ट होती? आगे चलकर जब राजगद्दी पर बैठने के हकदार की बात उठेगी तब बड़ी दीदी जो कहेंगी वही करने का वचन भी मैंने दिया ही तो है। मैंने यह बात अनमने होकर तो नहीं कही थी। अपनी दीदी पर मझे विश्वास है...इसी निश्चय से मैंने हृदय से यह बात कही थी। जो सहृदयता पने दिखायी, बड़ी होकर भी मेरी दीदी ने वह सहृदयता नहीं दिखायी मेरे प्रति। वह बड़ी हैं, इस नाते वह पटरानी बनी। मुझे इससे ईष्या नहीं। सच तो यह है कि हमारी बड़ी दीदी पटरानी बनी-इसका मुझे गर्व है। इतना होने पर भी उसके मुंह से अभी असंगत बात निकली!...आगे क्या होगा? इस वक़्त शान्तलदेवी भी वहाँ नहीं। वे होती तो उन्हें समझाकर सही रास्ते पर ले आतीं। उन्हीं के प्रयत्न से तो दीदी पटरानी बनी। अन्चथा किसी घुड़सवार की पत्नी बनी होती, उस माँ की करतूत के कारण। माँ के वे ही गण इसमें उतर आये-से लगते हैं। माँ की तरह चलेगी तो इसकी भी दशा वहीं होगी जो माँ की हुई।' यों उसके मन में विचार चल रहे थे। इस तरह सोचते-सोचते पता नहीं कब उसकी आँख लग गयी। नौकरानी ने . जो दूध ला रखा था उसे पीना भी वह भूल गयी। मन्त्रणागृह से बल्लाल लौट आये। देखा तो दूध ज्यों-का-स्यों धरा पड़ा हैं। उन्होंने उसे जगाया, "तुम्हारी दीदी ने हँसी-हँसी में कोई ऐसी बात कह दी हो तो इतनी-सी यात पर असन्तुष्ट होकर दूध पिये बिना ही सो जायेगी क्या? अब तुम अकेली नहीं, दो जीव हो। उठो, पहले दूध पिओ।' कहकर दूध का गिलास देने को हाथ बढ़ाया। उसने मिलास हाथ में लेकर, 'वर. प्रसाद बनकर मिले तो अमृत यन जाएगा," कहती हुई महाराज के मुँह की ओर बढ़ाया। उनके लिए यह कोई नयी बात नहीं थी। आधा स्वामी के लिए, शेष देवी के लिए-यों दूध का विनियोम हुआ। "इस तरह ऐसे वक्त मन्त्रणा के माने विषय कुछ विशेष गम्भीर ही होगा। अगर मैं जान सकती हूँ, तो..." कहते-कहते रुक गयी। ___"अब न भी बताऊँ तो कल मालूम हो ही जाएगा। चेंगाल्बों का आनन्दिनी पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 291
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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