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________________ से हमारी भी सन्तान होगी, तो हम अपनी सन्तान और बिट्टिगा में भेदभाव करें तो बेचारे बिट्टिगा की मनःस्थिति क्या होगी, जरा सोचिए।" "आपसे ऐसा भेद हो ही नहीं सकता। जिनमें इ स होली है गरे उस दुर्भाव को निकाल फेंककर उन्हें एक सूत्र में जोड़ने की आप में क्षमता है। आप न होती तो पेरी ननदों का राजरानियाँ होना सम्भव ही नहीं था। परन्तु मैं उन्हें तथा उनके माँ-बाप को बहुत अच्छी तरह जानती हूँ। सब पिता के स्वभाव के अनुरूप हों तो बातें सुगम हो सकती हैं लेकिन यदि वे मां के अनुरूप हों, तब नहीं, उनमें यदि एक भी माँ के अनुरूप हो जाय तो आपका सारा किया-कराया पानी में होम करने का-सा होगा।" "न, न, हमें ऐसा सोचना तक नहीं चाहिए। हम जब सबका हित चाहते हैं तो हमें किसी के बारे में ऐसा सोचना तक नहीं चाहिए।" "उनके व्यवहार पर महाराज के जीवन का सुख-सन्तोष अवलम्बित है इसलिा। उस ओर मेरा ध्यान गया। वे मेरे मालिक (पति) की बहिनें हैं। उनका जीवन सुखी हो-या परी आकांक्षा है। माता के बारे में इसलिए कहा कि बच्चों नगी चलित की शीन' को प्रयास से मेरा in trai | "माँ ने जो ग़लतियाँ की उन सबका उन्हें बोध है, इसलिए ऐसा नहीं होगा।" "मैं भी यही चाहती हूँ। पहादण्डनायक जी के वंशीय सदा ऐसे ही निष्ठावान बनकर रहें, यही आकांक्षा है। मेरे मालिक की भी यही आशा है। मेरे मालिक अभी से कह रहे हैं कि अपने बच्चों को उसी तरह तैयार करना होगा जैसे उसके पिता ने उन्हें और उनके बड़े भाई को राष्ट्र कि प्रति निष्ठावान के रूप में तैयार किया "अब यह राजा और राजकर्मचारी का अथवा मालिक नौकर का सम्बन्ध नहीं, दण्डनायिका जी, इस सबसे बढ़कर हैं अब का यह रिश्ता। दोनों तरह की बन्धुता के सूत्र में बंधे हैं। इसको इसी तरह आगे भी बनाये रखना है।" "राजपरिवार की उदारता ऐसी ही बनी रहे तब सब सम्भव हो सकेगा।" “राजपरिवार की उदारता जाएगी कहाँ? ऐसी ही बनी रहेगी। सभी उसकी उस उदारता के पात्र होंगे। कल आपकी ननदों में किसी के यदि लड़की पैदा हो तो आपकी बहू बनाये बिना रहेंगी?" ___ मैं कैसे कहूँ! मेरे लड़के तो राजा बनेंगे नहीं। वे ही यदि सोचें कि उनकी बेटियाँ भी गनी ही बने तो इसे ग़लत भी कैसे कहें? ऐसी कोई आकांक्षा नहीं मुझमें।" "न हो तो आप स्वयं लड़की को जन्म देकर उस रानी बना, मना कौन करेगा।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 285
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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