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________________ बदहज़मी के इकार लेकर स्वादिष्ट भोजन के स्वाद को बिगाड़ने की भाँति, आप अपने जीवन को क्यों थिगाड़ें। दूर-दूर रहकर ही उस प्रेम के स्वरूप के ज्या-का-त्यों बचाए रखेंगे।" चट्टला ने अनुरोध किया। चाविमच्या द्वारा यह सारा समाचार सन्निधान को विदित हो गया। चाविमव्या ने निवेदन किया, "उस पहिला को हमारे गुप्तचरों के दल में सम्मिलित कर लें। तो बड़ा उपकार हो सकता है। वह बहुत सूक्ष्म-मति है।" फिर भी महामातृश्री की इच्छा के कारण चाविमय्या की सलाह कारगर नहीं हो सकी। महामातृश्श्री (एचलदेवी ने स्पष्ट कह दिया, “पोयसल राज्य की नारियों को अपना शील भंग करने की जरूरत नहीं।" इसलिए विचार-विमर्श के बाद अन्त में उनके जीवनयापन के लिए आवश्यक थोड़ी-सी खेती और कुछ मासिक वेतन देने का निश्चय किया। अब एक तरह से राजधानी और राजमहल का वातावरण शुद्ध और परिष्कृत बनकर सहन हो रहा था। ऐसे ही एक दिन बिट्टिदेव ने अपने बड़े भैया से खुद के बारे में बात छेड़ी। दण्डनायिका चामब्बे ने महापातृश्री से क्या कहा था, यह मालूम नहीं था। इसे छोड़कर तब तक और जो भी बातें हुई थी उनसे तो सब परिचित ही थे। सुनवाई के बाद दूसरे दिन मरियाने दण्डनायक ने महाराज बल्लाल के दर्शन कर निवेदन किया, "भगवान ने हमारे राज्य पर कृपा बरसायी, सब-कुछ ठीक चल रहा हैं। राज्य का महादण्डनायक होकर भी उस वामाचारी के बारे में, वह नया व्यक्ति होने के कारण, विशेष जानकारी प्राप्त न करने की भारी ग़लती की। ऐसा अपराध करने पर भी इस महादण्इनायक के पद पर मेरे बने रह जाने का औचित्य नहीं रह जाता। इस बात को मैंने प्रधानजी से भी निवेदन किया है। सन्निधान और ये-दोनों ही मुझसे छोटे हैं। उम्र अधिक होने पर भी छोटों के सामने ग़लती को स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं। मुझे इस पद से मुक्त कर दें तो मैं कृतज्ञ होऊँगा। इस भारी ग़लती का बोझ ढोकर इस जिम्मेदारी का निर्वहण नहीं हो सकता।" अनजान में गलतियाँ हो जाएँ तो कोई क्या कर सकता है? आपने मन-वचन-तन से कभी भी राष्ट्रहित की उपेक्षा नहीं की। आपका जीवन राष्ट्र के लिए ही समर्पित रहा है। इसलिए पिछली सब बातों को भूलकर जैसा अब तक चला है वैसे ही चलना चाहिए। किसी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं-यह हमारी राय है। प्रधानजी ने क्या कहा?" ___"इस विषय में तो सन्निधान ही निर्णय ले सकते हैं-कहकर वह खिसक गये।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 255
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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