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________________ "प्रभुजी को अब विश्राम करना चाहिए। आज्ञा हो तो हम चलें। धीरे-से नागचन्द्र ने कहा। "अच्छा कविजी, शिष्य से भेंट हुई धी?" "हाँ, हुई थी। राजकुमार अब साँचे में ढलकर निखर सान की तरह बन गये "इतनी जल्दी आपने सब समझ लिया? वैसे हमें आपसे यह बात सुनकर बड़ा हर्ष हो रहा है।" युवराज की अनुमति पाकर नागचन्द्र उठ खड़े हुए। हेग्गड़े ने भी उटकर युवराज की ओर देखा। 'अच्छा हेग्गड़ेजी, आपके लौटने के बारे में कल निश्चय करेंगे। युवरानी ने भी कहा है। अब आप भी आराम करें।" प्रभु एरेयंग न कहा। __ दोनों प्रणाम करके चले गये। रेविमच्या ने अन्दर प्रवेश किया तो प्रभु का आदेश हुआ, "युवरानी को बुला ला।" रंबिमय्या के जाने के बाद प्रभु तकिय के सहारे लेट गये और छत की ओर ताकते रहे। थोड़ी ही देर में युवरानी एचलदेवी आयीं और पलंग पर अपने पतिदेव के पास बग़ल में बैठ गयीं।। "अग की महाराज के पास गया है : "नहीं, अभी तक मेरे पास ही बैठा था।" “साथ में छोटे आग्याजी और उदय भी धे?" "नहीं, वह अकेला ही मिलना चाहता था।'' "मिला?" "मिला। देखा प्रभु, भगवान कितने दयालु हैं:' "ओह, भूल गया, युवरानी बेटे को युद्ध में 'भेजते वक़्त डर गयी थीं न? सकुशल वहाँ से लौटने पर मातृहदय को शान्ति जो मिली होगी।" "ये सब बातें मेरे दिमाग में धों ही नहीं। भेजने के पहले कुछ घबराहट तो हुई थी। परन्तु वह एक माँ के हृदय की दर्बलता पात्र धी। अब मुझे एक योग्य ज्येष्ठ पुत्र मिल गया हैं। इसलिए कहा कि भगवान दयालु हैं।" 'माने?" 'माने यह कि अब वंश के लिए एक योग्य बड़ा पत्र है और पोसल राजा बनने योग्य है। मुझमें जो डर था, वहीं कि वह योग्य राजा नहीं यन सकेगा, अब दूर हो गया। अब मैं निश्चिन्त हूँ।'' "इतने ही में तुमने अपने लड़के को परख लिया!" "रोशनी का पता बड़ी आसानी से लग जाता है। प्रभु के साथ इस युद्ध क्षेत्र पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 29
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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