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________________ ! बल्लाल अन्तःपुर की ओर बढ़ चला। बाद में, रेविमय्या ने आगे बढ़कर कहा, "हेगड़े जी! आपको और कविजी को प्रभु ने बुला लाने का आदेश दिया है ।" और तब वे दोनों भी उसके पीछे चले गये। युवराज के विश्राम कक्ष में प्रवेश कर दोनों ने झुककर प्रणाम किया। पलंग पर पैर पसारे तकिये के सहारे बैठे प्रभु ने उन्हें बैठने का इशारा किया। दोनों बैठ गये। "पोय्सल वंश आप दोनों का कृतज्ञ है।" एरेवंग प्रभु ने कहा । सुनकर दोनों उनको और देखते रह गये। I "हमारी अनुपस्थिति में राजपरिवार की उन्नति एवं सुरक्षा हेतु आप लोगों ने जो श्रद्धा, निष्ठा, आत्मीयता तथा रुचि दिखायी, युवरानी जी ने संक्षेप में ही उसे टीक और सही ढंग से मुझे बताया है। सामने अपने को अच्छा होने का दिखावा करके पीछे से छुरा भोंकनेवाले लोगों को भी हमने देखा है। हमारी अनुपस्थिति में आप लोगों ने जैसा सुसंगत व्यवहार किया, सुनकर हमें बड़ा गर्व हो रहा है ख़ासकर इस प्रसंग में कविजी के बारे में एक विशेष बात कहना चाहूँगा। बल्ताल के गुरु होकर उसे आपने इस पोय्सल वंश के योग्य बनाया है। इससे बढ़कर हम और क्या चाहेंगे? अगर वह आपके हाथ नहीं लगता तो उसका रास्ता ही शायद कुछ का कुछ हो जाता। आपके इस महत्त्वपूर्ण कार्य को मापने का कोई मापदण्ड हमारे पास नहीं है। हमने कभी राजकुमार के बारे में सीधे कोई बात नहीं पूछी। युवरानी जी ही मुझे इस सम्बन्ध में समय-समय पर बताती रही हैं। हमारे हेगड़ेजी जैसे इस पोय्सल वंश के निष्ठावान हैं, वैसे ही आपको सदा सर्वदा इस राजवंश के ही आश्रय में रहना चाहिए। इस बार के युद्ध में हमने विजय पायी। अप्पाजी ने हमारे प्राणों की रक्षा की। पण्डित चारुकीर्ति ने बुद्धभूमि में साथ रहकर आसन्न मृत्यु से बचाकर हमें यहाँ तक आने में समर्थ बनाया है। पता नहीं अभी और कितने दिन तक हमें इस अशक्त दशा में रहना होगा। भगवान की जैसी मर्जी! अब तो हमारे वंश के इन अंकुरों की रक्षा का दायित्व आप ही लोगों पर है। हम चाहे जीवित रहें या न रहे, आप लोगों से हमें यह आश्वासन मिलना चाहिए कि आप सब इस दायित्व को निभाएँगे ।" प्रभु ने कहा । "हम आश्वासन देते हैं। हम अपना दायित्व अब तक निभाते रहे हैं और जीवनपर्यन्त निभाते रहेंगे। परन्तु प्रभु आज जिस ढंग से कह रहे हैं, यह हमें अच्छा नहीं लग रहा हैं। हमें इस बात का पूरा विश्वास है कि दीर्घकाल तक हमें प्रभु का मार्गदर्शन मिलता रहेगा। इसलिए प्रभु ऐसा न कहें, वही हमारी प्रार्थना है।" मारसिंगय्या ने कहा । “चों ही मन में आया कह दिया। अब आगे नहीं कहूँगा ।" 28 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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