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एक ढांग था, एक नाटक था।'' ___ तुमने कहा, अंजन के प्रयोग में एरेयंग प्रभु को देखा।"
''उस नाम को बताने पर विश्वास करने की स्थिति थी। एरेयंग प्रभु को किसी बात पर मरिचाने दण्डनायक पर सन्देह है, यह हमें मालूम था।"
"दण्टनाविका जी ने जिसे देखा, बताया, वह झूठ था?"
"उन-उनकी कल्पना के अनुसार कुछ देखने का सा आभास होता है। जिनका मन दुर्बल होता है। उन्हें जैसा कहोगे वही आभास होने लगता है।" ___ "तो यह अंजन-क्रिया सब झूठ है?"
"मैं इसे नहीं जानता। जो इस वृत्ति को जानते हैं उनसे ही दर्यात करना होगा। उनमें प्रसिद्ध अंजन-क्रिया करनेवालों को मैंने देखा हैं। उनके सवाल के ढंग को गौर से देखा है। जीवन में पहली बार मैंने महादण्डनायक के ही घर में इसका प्रयोग किया।"
"तो फिर बशीकरण"
'बह सब-कुल मैं नहीं जानता। मुझे इतना भर पता था कि इस वशीकरण के लिए भस्म दिया करते हैं, सो मैंने भी दे दिया। मुझे कोई भी मन्त्र-सिद्धि नहीं। मैं तन्त्र मात्र जानता हूँ।"
"ठीक है। फिर एक बार पूछता हूँ, ये चार लड़कियाँ कौन हैं, जानते हो?" "नहीं, इन कोई मेरे स नर, अ.यो. मग इन्हें कहीं नहीं देखा है।" "तो वे जो कहती हैं कि तुमको देखा नहीं...यह सच है?"
''मैंने नहीं देखा-यह सच है। उन्होंने मुझे मेरी नज़र बचाकर अगर देखा हो तो मैं कैसे कहूँ कि नहीं देखा। उनकी बातों पर विश्वास करना न करना आप की इच्छा और सन्दर्भ पर निर्भर हैं।'
फिर बिहिदेव महाराज के पास गये। दोनों ने आपस में बातचीत की।
“किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि हमारे पीठ पीछे कुछ हुआ, इसी लिए यह महासभा बुलायी गयी। इस विषय में जल्दबाजी से कोई निर्णय देना
सन्निधान की इच्छा नहीं हैं। सबसे एक साथ या प्रत्येक से अलग-अलग चर्चा • करने के बाद ही कोई निर्णय लिया जा सकेगा। तब तक ये तीनों और इसकय्या बन्धन में ही रहेंगे। आज की यह महासभा विसर्जित की जाती है।" बिट्टिदेव ने कहा।
घण्टी बजी । सैनिक बन्दियों को ले गये। सभासदों ने झुककर प्रणाम किया और पीछे की ओर सरकते हुए विदा हुए।
महाराज बल्लाल और बिट्टिदेव अन्तःपुर की ओर चले गये।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 259