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________________ भ्रष्ट होने के विषय में इन दोनों ने सम्पति दी है। इस चोकी ने मुझ पर जबरदस्ती की और शीलभ्रष्ट किया, भ्रष्ट हुई। अब रह ही क्या गया था इसलिए राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर कुछ कर गुजरने के लिए मने, इस चोकी ने जैसा कहा, बैसा किया, किसी तरह का विरोध किये बिना। संख्या प्रधान नहीं। जिस स्थिति में वैसा किया वह मुख्य है-यही मैं मानती हूँ। परदे के पीछे रहकर मैंने इस चौकी की सारी बातें सुनी हैं। सन्निधान चाहें तो पीट पर चाबुक लगवा सकते हैं। उस समय भी मेरे मुँह से वही सत्य निकलेगा। मुझे इस जिन्दगी में अब कोई आशा नहीं है। स्त्री होकर जन्मी, भरपूर प्रेम करनेवाले पति को पाया था। माँ बनकर घर को मॅजाने की अभिनाशा रखनेवाली मुझको भगवान ने ऐसा दण्ड क्यों दिया सो मालूम नहीं। वह शायद किसी पूर्वजन्मकृत पाप का फल हो सकता है। मैं पतिता बनी। फिर भी राष्ट्रप्रेम का पवित्र कार्य किया-इस बात की तृप्ति मुझे मिली है। यह महासभा मुझे चाहे जो दण्ड दे, मैं भुगतने के लिए तैयार हूं। मुझे भयंकर मनोवेदना देकर मेरे शरीर का उपयोग अपन सुख के लिए करनवाले इन लोगों से बदला लेने की मेरी इच्छा है। मेरी इस एकमात्र अभिलाषा को सफल बनाएँ-यही मेरी प्रार्थना है।" चाविमय्या तब तक वहाँ पहुँच चुका था। उसने बताया "चोकी और वामाचारी दोनों गुप्तचर का ही काम करनेवाले हैं। यह वामाचार आमाचार सब-कुछ केवल ढोंग और नाटक है। दुर्बल मन कं लोगों को नचाने की युक्ति है। यह सव नाटक रच रखा है। इसको यह मालूम नहीं पड़ा कि मैं पीयसल राज्य का गुप्तचर है। इस चट्टलदेवी के महान त्याग से शत्रुओं के अनेक रहस्य जानने में सहायता मिली. और शत्रुओं की सना को आड़े-तिरछे मागों में चलने-चलाने के लिए उकसाने में मदद मिली। वास्तव में पहले इस चहलदेवी पर मैंने विश्वाप्त ही नहीं किया। इस भ्रष्ट स्त्री के कारण मेरे लिए अनिष्ट की सम्भावना हो सकती है-यह सोच पैने बहुत सावधान रहकर इसका हर तरह से, हर पहलू से निरीक्षण किया। उसके बदला लेने की प्रबल इच्छा से स्पष्ट हो गया कि वह राष्ट्र-निष्ठा सहज स्वभाव-मत्त है और सुभद्र है। राष्ट्र-निष्ठा के ध्येय को साधने में अपनी देह को भी दाँव पर लगाकर इसने शुन्द्ध और स्वस्थ मन से शत्रुओं की अनेक गुप्त गतिविधियों का पता लगाया। इस जग्गदेव को दबाने और पकड़ लेने में चट्टनदेवी की राज्यनिष्ठा ही सबसे अधिक सहायक रही है।" ___ चाविमय्या ने आगे कहा, "इस वामाचारी का धारानगरी के भोज से कोई सम्बन्ध नहीं। उसने जो क्रिम्सा सुनाया वह सब सरासर झूठ है। परदे के पीछे रहकर मैंने, इसने जो कुछ भी कहा, सब सुना। ये दोनों एक ही शत्रु के गुप्तचर हैं। ये चोल प्रतिनिधि आदियम के गुप्तचर हैं। राजनीतिक गतिविधियों को ध्यान पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 251
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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