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बात समाप्त हो गयी। दण्डनायक मौन ही बैठे रहे। शायट महामातृश्री की सान्त्वना भरी बातों से उन्हें काफ़ी बल मिल गया था।
पण्डितजी अपनी दवाओं की पेटी को लेकर बाहर आये। एचलदेवी, मरियाने और विट्टिदेव उठ खड़े हुए।
एचलदेवी ने पूछा, “पण्डितजी, क्या हाल है?"
"सन्निधान को पहले जो बताया है उससे भिन्न कोई विशेष बात नहीं कह पा रहा हूँ। भगवदिवा को न जाता है." पसिनः कता:
"अभी कैसी है?"
"शान्ति से लेटी हैं। उल्टी होने से गला कमजोर हो गया है। बोलने पर भी आवाज साफ़ सुन नहीं पड़ती, फुसफुसाती-सी सुन पड़ती है। पूछ रही थीं कि क्या सन्निधान राजमहल चली गयीं। मैंने कहा कि यही हैं, मिलना है? इस पर वह बोलीं- "दिख नहीं रहीं सो यों पूछ ही लिया।' इतना कह पण्डितजी मौन हो गये।
'चलो छोटे अप्पाजी, जाने से पूर्व एक बार और उन्हें देख लें।' काकर एचलदंवी बिट्टिदेव के साथ कमरे के अन्दर गयीं। ___ लड़कियाँ उट खड़ी हुई । दण्डनायिका की दृष्टि पचलदेयी और बिट्टिदेव की ओर गयी। उसने दोनों हाध जोड़े। "बेटियों को आपकी गोद...." कहना चाहती थी। होट. मात्र हिले, बोल न सकी। ___"आप आराम कीजिए। हम फिर आएँगे।" कहकर एचलदेवो वहाँ से निकल आयीं। विट्टिदेव भी चले आये। उन लोगों को विदा करने के लिए सबके सब पालकी तक आचे। पालकी चढ़ते वक्त बिट्टिदेव ने कहा, "आज की सभा स्थगित की गयी है, दण्डनायिका जी का स्वास्थ्य अच्छा होने के बाद सभा युलाने का निश्चय सन्निधान ने किया है।" . 'अच्छा।'' मरियाने बोले। एचलदेवी और बिहिदेव राजमहल की तरफ़ और पण्डितजी अपने घर की ओर चले गये और दण्डनायक और उनकी बेटियाँ अपने महल में।
देकब्बे ने बताया कि मालकिन को नींद लग गयी है।
'दहिगा वहीं रहे। हम जल्दी भोजन कर आते हैं। देकब्बे, जितनी जल्दी हो सके भोजन चार करो और हमें सूचित करो।' मरियाने ने कहा और वहीं झूले पर बैठ गये। बेटियाँ अपनी माँ को देखकर कमरे में लौट आयीं।
देकब्बे से सूचना मिलते ही सब गये और भोजन कर आये। घर की हालत ऐसी थी कि शिक्षिका को भी नौकर से सूचना दिला दी गयी कि अध्यापन के लिए आज नहीं आना है। ऐसी दशा में बच्चियों का मन भला अध्ययन में लगता?
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 241