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________________ ने उन्हें देखा। लगा कि उनके अन्तरंग में कुछ तुमुल चल रहा है। वह पास गये। उनका ध्यान आकर्षित करने के इरादे से कहा, "खड़े क्यों हैं? आइए दण्डनायक जी, बैंठिए।" ___ "हाँ, हुँ..." कहते हुए दण्डनायक गलीचे पर वहीं बैट गये। बिट्टिदेव भी उन्हीं की बगल में जा बैठे। बिट्टिदेव ने पूछा, ''दण्डनायिका जी बहुत थक गयी हैं?" "हाँ, उल्टियां करने से थकावट आ गयी है। उसकी तकलीफ़ देखी नहीं जाती। भगवान उसे पार लगा दे, काफ़ी है। लगता है, मैं ही उसकी मृत्यु का कारण बन रहा हूँ।" उनका गना ऊँध गया । उस पुष्ट बलवान व्यक्ति का यों विहल होना देख बिट्टिदेव का अन्तरंग मानो घुलकर द्रवित होने लगा। वह कुछ कह न सके। तब एचलदेवी ने सान्त्वना देते हुए कहा, ''दण्डनायक जी, दण्डनायिका जी ने मुझे वह सारा वृत्तान्त कह सुनाया है। आप दोनों के बीच और उसके पहले बेटियों और उनके बीच जो कुछ भी बातचीत हुई थी वह सब भी बता दी है। मा भगान की इता है। उसका दूसरा कोई व्यक्ति कारण नहीं बन सकता। प्रभु को मृत्यु के लिए दण्डनायिका जी को कारण टहराना जितना निराधार है, यह भी उतना ही अर्थहीन है। दण्डनायिका जी मन-ही-मन जिन बातों के कारण घुल रही थीं, उन्हें खुलकर व्यवत्त करने के लिए आप स्वयं प्रेरक रह हैं। उसी का फल हैं कि आज उनकी आत्मा को शान्ति प्राप्त हुई हैं। वे दीघांय होंगी। लेकिन यदि मृत्यु हो भी गयीं तो हम यही कहेंगे कि वे शान्ति और सन्तोष के साथ चल दी। इसलिए आपने उनका उपकार ही किया है। आप दुखी न हों। जल्दी होते समय तकलीफ़ तो होती हैं लेकिन बाद में आराम हो जाता है। भगवान की इच्छा होगी तो वह जल्दी ही अच्छी हो जाएंगी।" “बात कहनेवाला मैं था। मैं जानता हूँ कि वह कैसी चुभती-सी बात थी।" "तो मैं भी कह सकती हूँ बिना बुलाये आ गयी और उनके थकने तक उनसे बातें करवाकर और पकाने का कारण बनी या कि उनकी मृत्य का कारण बनी। ऐसा नहीं है। हमें बुद्धि से काम लेना है। हमें ऐसा नहीं विचारना चाहिए। हर काम के पीछे कोई अदृश्य हाथ क्रियाशील है, हम इस बात को मानते हैं। हम तो केवल करणमात्र हैं, कारण नहीं । करण को कृति-दोष नहीं लगता। काटनेवाले हाथ को जो दोप है वह तलवार को नहीं लगता। अब आपको वो घबराना नहीं चाहिए। अगर आप ही संयम खो बैठेंगे तो इन वेचारी अबोध बच्चियों का क्या होगा? आपका संयम बच्चियों को डाढस बंधाने के लिए बहुत आवश्यक है-हम बड़े लोगों को यह बात नहीं भूलना चाहिए।" एचलदेवी ने फिर से समझाया। 241 :: पट्टमहादयो शान्तला : 'माग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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