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देखकर माचिकब्बे के हाथ दे, मारसिंगव्या उठकर चले गये। भोजन भी समाप्त नहीं किया। माचिकब्वे ने पढ़कर बेटी को थमा दिया। और खुद भी पतिदेव के पोछे-पीछे चली गयीं। मारसिंगय्या यह कहकर "शाम को मेरी प्रतीक्षा न करें, और जो बात तुमसे छिपा रखी थी वह उस चिट्ठी में है" राजमहल की तरफ चले गये ।
युद्ध सन्निहित है - यह खबर केवल कुछ ही लोग जानते थे । परन्तु वह अब राजधानी के घर-घर की बात बन गयी थी। राजधानी में एक नागरिक संरक्षक दल का संगठन किया गया। इस दल का कार्य था कि आपत्कालीन परिस्थिति के उत्पन्न होने पर राजधानी के उत्तर-पूर्व में एक कोस दूरवाले जंगल में विशेष रूप से तैयार सुरक्षा-स्थलों पर स्त्रियों और बच्चों को तथा उनकी मूल्यवान वस्तुओं को सुरक्षित पहुँचाना।
मरियाने दण्डनायक के घर की अध्यापिका ने इस सन्दर्भ में एक सलाह दी थी, उस सलाह के अनुसार इस नागरिक संरक्षक दल में दोरसमुद्र की महिलाओं को कुछ योग्य दायित्व देना था। इसके लिए महाराज से स्वीकृति भी मिल गयी थी। इतना ही नहीं, उस स्त्री दल के नेतृत्व का उत्तरदायित्व भी उन्हीं को सौंप दिया गया था। एवं अमहियाएँ गणी विजों, आदि उस दल में नहीं थीं। सिर्फ सैनिकों की जवान व स्वस्थ पलियों व इसी तरह की अन्य महिलाओं को ही दल में शामिल किया गया था। हाँ, कुछ स्त्रियाँ जो संकोच और लज्जावश शामिल नहीं हुईं, उन्हें छोड़ दिया गया। इन स्त्रियों की सहायता के लिए सिपाहियों का एक दल भी तैनात था और तीव्रगतिवाले वाहनों की भी व्यवस्था की गयी थी। यह कहने की जरूरत नहीं कि इस व्यवस्था में शान्तला भी थी । वास्तव में वह उस अध्यापिका का दायाँ हाथ वन गयी थी। हालाँकि दण्डनायिका चाम ने समझाया कि हम जैसे स्तर के लोगों को गम्भीर भाव से अपने घर में रहना ही शोभा देता है, फिर भी पद्मला हट करके शान्तला से जा मिली। इससे उसका एकान्तिक चिन्ताजन्य दुःख कुछ कम हुआ । चामला ने भी पद्मला का अनुकरण किया। चॉप्पिदेवी उत्साह न होने के कारण पीछे रह गयी, और फिर वह छोटी भी तां धी ।
पद्मला राजधानी के संरक्षक दल की सदस्या बनी। उस दल की सदस्याओं को उनका कर्तव्य विस्तारपूर्वक समझा दिया गया कि संकट के समय लोगों को शत्रुओं से बचाकर सुरक्षित स्थान पर तुरन्त भेज देना ही उनका मुख्य कार्य है पद्मला समझ नहीं पा रही थी कि यह शरणस्थान होते क्या हैं। सबके सामने किसी से पूछना भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए मौका पाकर जब
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12 : पट्टमहादेवां शान्तला भाग दो