SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुझ पर थोप रहे हैं?" ___मैं जवाब नहीं दे सकता। हमारे घर में जो अंजन लगवाया था, उस बात को लेकर तुम्हारे भाई ने जब प्रभु के साथ बातचीत की थी तब महाराज के सामने ही बातें हुई थीं। उस दिन से वे दूर-दूर रहने लगे हैं। इसके बाद की घटनाओं ने उन्हें और दूर कर दिया है। एक बेवकुफ़ी ने हमारे सारे परिवार को, इन बच्चियों को कितना नुकसान पहुँचाया है-तुम ही सोचो, समझो। इतना पर्याप्त न समझकर, उस हेग्गड़े परिवार को हानि पहुँचाने का इरादा तुमने किया और वच्चियों से यह कहकर खुश हुई कि ये हमारे नहीं। जब खाद उनके घर पहुँच गवी तर तुम इतना खुश क्यों हुई? इतना उत्साह क्यों दिखाया? तब यह सब तुझे नहीं सूझा। में विश्वास करता था कि तुम बदल गयी और हेग्गड़ती के साथ मैंत्री बढ़ाकर टीपा रहोगी। प्रेरे एक से इन शादी की नान ही लुप्त हो गयी थी। जब तुपने यह कहा कि वे हमारे हैं ही नहीं, तो यही सिद्ध हुआ कि तुम्हारा मन कितना नीच है। जब तक तुम अपने अन्तरंग का शोध करके उसे परिशुद्ध न बना लोगी तब तक तुम्हारा बचाव नहीं होगा। तुमने क्या किया है, जानती हो? आँचल में आग रख ली हैं। तुमने समझा उसे किसी पर फेंककर जलाकर भस्म कर लोगी। आज वह आग तुम्हीं को जलाकर राख किये दे रही है। बहुत दिनों से मैं यह सब कह देना चाहता था पर कहने से पीछे हटता रहा । आज सब स्पष्ट रूप से कह दिया है। अपने को सुधार लो तो तुम्हें भी शान्ति मिलेगी। बच्चे सुखी होंगे। मेरा भी अपना गौरव बना रहेगा। नहीं तो मैंने पहले ही कह दिया है कि हमें राजधानी छोड़ देनी पड़ेगी। अब चाहे तुम प्राण त्यागो या कुछ भी करो। तुम्हारे इस बर्ताव के कारण मैं अपने को दण्ड दे लूँगा। तुम्हारी तरफ़ से किसी से कुछ नहीं कहूँगा। समझी?" दण्डनायिका कुछ नहीं बोली। उसका पौन सम्मति का ही सूचक मानना चाहिए। परन्तु उसका अन्तरंग खूब विलो दिया गया था। उसने पन-ही-मन कहा, "अब मैं इस दुनिया में अकेली रह गयी हूँ। सब मेरे विरोधी हैं। जो भी हो प्रतिक्रिया किये बिना चुपचाप मुँह बन्द कर मुझे पड़ी रहना होगा-आगे से। मैं मिर उठाकर सबके सामने इतराती हुई गर्व के साथ चलती रहीं। अब सिर झुकाकर सबके आगे रहना होगा; इससे बढ़कर दण्ड और क्या हो सकता है? हे भगवान, कैसी दशा कर दी मेरी । बच्चों की भलाई चाहते-चाहते एक माँ की यह दशा! ठीक है, दूसरा कोई चारा नहीं। फ़िलहाल मौन रहकर समय बिताना होगा। हो सकता हैं आगे चलकर कोई रास्ता दिख जाए।'' यों सोचकर अपने को सान्वना देती चामञ्चे पनबट्टा का थाल उठाकर वाहों से चुपचाप बाहर निकल आधी। 156 :: पमहादेवी शान्तला : 'पाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy