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________________ आपका है, कहकर उन्हें टण्टनायक जी को सौंपा है। तब क्या होगा, जानती हो? जब बच्चों में सन्देह पैदा हो जाएगा और इस बात की तहकीकात चलेगी कि इनकी जड़ कहाँ है तो वह बहुत बड़ी बुराई की जड़ बनेगा। आजकल तुम्हारी अक्ल मारी गयी है। कोई बात मत करो। बच्चियों अगर पूष्ठं तो कहना कि मैं ऐसा समझती धी, अगर तुम्हारे पिता ऐसा कहते हैं तो वही ठीक है। समझी? तुम खुद बात मत उठाना।" ऐसा ही करूंगी, पर तावीज़ों का क्या करेंगे?" ''एक कण्ठाहार बनवाकर तुम्हारे गले में पहनाऊँगा।" "टीक, आपको क्या? बचपना करते हैं।" "काल भी करूँगा ! इस बारे में दो बार नहीं बोलना होगा।" "हाय, जब से वे हमारे पास आये हैं, हमसे राजमहल का सम्बन्ध दूर ही होता गया है। अगर ये मनहूस तावीज़ गले में बँध गये तो हमारे प्राण ही जोखिम में पड़ जाएंगे।' ___"हमने जो किया, उस हमें भुगतना ही होगा। उसे निरपराधियों पर मढ़ दें तो वह हमें ही निगलेगा।" "तो जो ग़लती हमने की उसके लिए हमें कभी क्षमा ही नहीं मिलेगी ? उसका कोई परिहार हो नहीं ?" __ हैं। खुले मन से साहस करके सम्बन्धित लोगों के सामने साफ़-साफ़ अपनी ग़लती को स्वीकार कर लेना। इससे बढ़कर उत्तम मार्ग दूसरा नहीं है।" "पान-प्रतिष्ठा को खो देने के बाद बचंगा ही क्या?" "निर्मल मन बच रहेगा। इस निरर्थक मान-प्रतिष्ठा से वह अच्छा है।" "नया वेदान्त शुरू कर दिया है आपने।" "अब आगे कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है। महाराज अब दोरसमुद्र लौटने की बात ही नहीं कर रहे हैं। अभी जैसा चल रहा है वैसा ही ठीक से चलता रहे राज्य का सब कारोवार। प्रधानजी राज्य के प्रधान सूत्रधार हैं। आप लोगों की निगरानी में सब सुरक्षित है। हम यहाँ रहें चाहे वहाँ, दोनों बराबर हैं। हमें दोरसमुद्र से चेनापुरी अच्छी लगती है। यहाँ के लोग और यहाँ का वातावरण सब हमें अच्छा लगता है। जब महाराज स्वयं यह बात तुम्हारे भाई से और मुझसे कह रहे हैं तो माने यही हा 'आप लोगों के साथ रहे अब तक, सो काफ़ी है: आप लोग वहीं रहे और हम यहीं रहेंगे।' यही न उनके कहने का तात्पर्य हुआ! ऐसी स्थिति में रहने से बेहतर हैं बानप्रस्थ होकर कहीं चले जाना। यह सब तुम्हारी ही कृपा है।'' ___"ठीक है। सारी खुराई की जड़ में ही हूँ। मैं ही अपने प्राण त्याग दूंगी। बाद में आप सब सुखी होकर रहेंगे। मैंने कौन-सा ऐसा अन्याय किया है जो आप सब पट्टमहादंची शान्तला : भाग दो :: 157
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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