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________________ लेती बेखबर सो रही थी। दण्डनायिका को लगने लगा कि वह अपने घर में न रहकर किसी अपरिचित स्थान में रह रही है और इस तरह का भय ऐसी भ्रान्ति के कारण उसे होने लगा था। यह न आगे बढ़ सकी, न पीछे; निस्सहाय होकर वहीं खड़ी रही। ऐसे वक़्त गुस्सा बढ़ना सहज ही हैं। अपनी इस हालत का कारण सोये पड़े बेचार दांडेगा को समझा। दण्डनायिका का खयाल था कि दहिगा को जागते रहना चाहिए था। अपना गुस्सा वह दहिगा पर उतार देना चाहती थी। बेचारा कर ही क्या सकता था? रोज की तरह अपना सारा कामकाज समाप्त कर इकब्बे के भी सो जाने के बाद, सभी दरवाजों को अच्छी तरह बन्द करके सो गया था । महल के पहरेदार खुली तलवार हाथ में लिए पहरे पर अहाते के सदर दरवाजे पर तैनात थे। इन बातों की ओर दण्डनायिका का ध्यान ही नहीं गया। दडिगा पर गुस्से के कारण दण्डनायिका का बुरा हाल था। उसी वक्त गश्ती सिपाहियों ने सीटी बजायी, दूसरी ओर से दूसरे सिपाही ने सीटी के उत्तर में सीटी बजायी। इन गश्ती सीटियों की आवाज से दण्डनायिका का डर ऋण कम हआ। अब वह समझ सकी कि वह दोरसमुद्र में अपने ही महल में है। धीरे-से मुख्य दरवाजे तक गयी और खिड़की से बाहर झाँका । दूर घोड़े की टापों की आबात आती हुई सुनाई पड़ी। ऐसा लगा कि खुर के टापों की आवाज्ञ पास आती जा रही हैं। शायट पालिक ही आ रहे हैं। सदर फाटक के पास किसी के आने-जाने की धुंधली-सी छाया दिखी। पहरे के सिपाही भी टापों की आवाज़ सुनकर टहलते हुए इधर-उE. र चहलकदमी कर रहे थे, यह भी उसने देखा। वहाँ टापों की आवाज सुनती हुई प्रतीक्षा में खड़ी रही। आवाज पास आती हुई होकर, फिर कुछ दूर पर गयी हुई-मी लगने लगी और फिर बन्द हो गयी। घोड़े के जाने के मार्ग और उसकी टापों की आवाज-इनसे दण्डनायिका चामब्बे ने अन्दाज लगाया कि वह उसके भाई के महल की ओर गया होगा। तो इसके माने यह कि मालिक भैया के साथ ही गये थे, मगर भैया अकेले लौटे! तो क्या मालिक नहीं लौटे? क्यों? मालिक नहीं लौटे और भैया अकेले आये ती भैया को उसका कारण तो बताना चाहिए न? शायद जाकर जल्दी सो जाना चाहते होंगे। प्रतीक्षा में रहनेवालों की हालत कैसी रहेगी इसकी चिन्ता उन्हें भला क्यों होगी? बेचारी बहिन प्रतीक्षा में बैठी होगी यह यदि स्वप्न में भी देख लेते तो शायद कहला भेजते।...फिर भी वही लौटे इस बात का प्रमाण क्या है? खाली टापों की आवाज सुनकर दुनिया भर की बातें सोचना मनमाने अन्दाज़ लगाना क्या ठीक है। उस समय की हालत में दण्डनायिका यह सोच न सकी कि सही क्या है और ग़लत क्या हैं। इसीलिए वह इस ढंग से सोचती रही। उसने समझा कि प्रधानजी को घर पहुंचाकर मालिक शायद घर आएँगे। वास्तव में ऐसा होना भी चाहिए। पट्टपहादेवी शान्तला : भाग दो :: 15:
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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