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________________ तो होना ही चाहिए। स्वयं सशक्त होने पर उसका फायदा उठाने तथा दूसरे के निबंल होने पर उसे दबाकर रखने की प्रवृत्ति के लिए उचित पाठ पढ़ाना ही होगा।" बिट्टिदेव का स्वर अब भी उत्तेजित था। “महासन्निधान के रहते हुए हम छोटों को उनकी सलाह के अनुसार चलना चाहिए। छोटे अप्पाजी, उद्विग्न या उत्तेजित होकर काम करने से हम कुछ भी संभाल नहीं सकेंगे। यदि चालुक्यों ने अन्याय किया है तो भगवान ही उन्हें दण्ड देगा। हमें दण्ड देने के लिए आगे नहीं बढ़ना चाहिए।' "यह खींच-तानकर छोड़ने की रीति है, माँ। चालुक्चों ने कमोनापन दिखाया ___'इसमें एक बात और है। प्रभु युद्धभूमि से लौटने के बाद जब रांगशैया पर पड़े थे तब एक व्यक्ति को देश-निकाले का दण्ड दिया था उन्होंने। उसकी चालाकी चालुक्यों के इस तरह के व्यवहार का कारण बनी-वह बात सुनने में आयी है। इसलिए शायद ग़लतफ़हमी के कारण ऐसा व्यवहार किया हो। समय आने पर वास्तविकता का उन्हें पता लग ही जाएगा। इसलिए अभी हमें शान्त ही रहना होगा। "तव क्या वह वामाचारी ही इसका कारण हैं, माँ?'' बल्लाल जो अब तक मौन रहा, सवाल कर बैठा। "वह क्या था सो मुझे मालूम नहीं, अप्पाजी। मुझे सिर्फ इतना ही मालूम है कि राज्य के लिए खतरा पैदा करनेवाले एक व्यक्ति को देश-निकाले का दण्ड दिया गया था। तुम शायद मुझसे ज़्यादा जानते हो-ऐसा लगता है। कौन था वह ? उसने क्या किया?" "माँ, प्रभु को मालूम था। उन्होंने जब आपको नहीं बताया तो क्या मेरा कहना ठीक होगा? इसके अलावा उन्होंने आज्ञा दी थी कि इस सम्बन्ध में कभी किसी से कुछ नहीं कहना।" ___"मुझे भी ऐसा ही लगा था कि कुछ बात रही होगी। एक दिन प्रभु ने प्रधानजी से जब गुप्त मन्त्रणा की थी तब तुमको भी अपने साथ रखा था। जब मैंने तुमसे पूछा तो तुम कुछ न कहकर खिसक गये थे। प्रभु से पूछा तो उन्होंने कहा कि इन सब राजनीतिक बार्ता को जानकर अपना दिमाग़ क्यों खराब करती हो, वह यदि तुमको मालूम न होती हैं तो भी तुम्हारा कोई नुकसान नहीं। इस ढंग से उन्होंने कह दिया था। मैं चुप रह गयी। अब वे ही न रहे। उन्होंने तुम लोगों को मुझे सौंपकर होशियारी से देखभाल करते रहने का आदेश दिया था। आज तुम लोगों के लिए ही मैं जी रही हूँ। इसलिए प्रभुजी जिन बातों को जानते थे उन सभी बातों से मैं भी परिचित रहूंगी। तो जो वे करना चाहते थे, उसे करने पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 191
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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