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________________ नहीं सकते थे। रात को ही वैद्य पण्डित गोपनन्दी और चारुकीर्ति दोनों ने मिलकर विचार-विमर्श किया। उनसे आश्वस्त होने के बाद ही महोत्सव को तेरस तक स्थगित करने का निर्णय लिया गया था। E राजमहल में रोशनी की जगह जैसे अँधेरा छा गया। बात को गुप्त रखकर भीतर ही भीतर चिकित्सा कार्य चलता रहा। परन्तु दुर्भाग्य कि सारे प्रयत्न बेकार गये। एकादशी के दिन धनिष्ठा नक्षत्र के उदय होने के कुछ ही देर बाद प्रभु एरेयंग की आत्मा परलोक सिधार गयी। आनन्द और उल्लास से भरा दोरसमुद्र दुःख का सागर बन गया। पट्टाभिषेक महोत्सव के आनन्द में भागी बनने के लिए जो जनसमूह एकत्र हुआ था उसे इस दुःखपूर्ण अन्तिम यात्रा में शामिल होना पड़ा। किसी को कभी दुःख न देनेवाली, सदा सबका हित चाहनेवाली एचलदेवी जैसी महासाध्वी की पुकार भी विधाता को सुनाई नहीं दी, उसका सुहाग ही छीन लिया। महाराज विनयादित्य पुत्र-शोक के इस आघात को न सह सके, वे विस्तार पर आ पड़े। पुरोहित वर्ग ने आकर बताया, "नक्षत्र अशुभ है, और ऐसे अशुभ नक्षत्र में मृत्यु होने के कारण छः माह के भीतर स्थान छोड़ देने की रीति है। वैसे राजगृह और गुरुगृह की लिए सभी नियम वागू नहीं हो अतः जैसा कि समझें, करें ।" महाराज, एचलदेवी और राजकुमार सभी का वहाँ रहने को जी नहीं कर रहा था इसलिए राजहित को स्वीकार कर वे बेलापुरी चले गये। राजधानी के चारों ओर जो तम्बू लगाये गये थे उन्हें निकाल रखने की भी किसी को याद नहीं रही। जो लोग आये थे वे भी बिना अनुमति लिये चुपचाप लौट गये। हवा, पानी और धूप से वे तम्बू टूट-फटकर मानो विछोह के दुःख से अधोमुखी हो गये थे। I राज्य की सारी जनता अपार दुःख- सागर में डूब गयी। "हाय, यह क्या हो गया। ऐसा नहीं होना चाहिए था।" कहती रह गयी। I राजपरिवार के साथ चिण्णम दण्डनाथ, उनका परिवार और अमात्य मानवेग कुन्दमराय भी बेलापुरी को चल दिये। प्रधान गंगराज भी जाना चाहते थे । उन्होंने स्वयं महाराज से निवेदन भी किया था, पर महाराज ने स्पष्ट कह दिया- " आपको और दण्डनायक मरियाने को राजधानी में ही रहकर यहाँ के समस्त कार्यों का निर्वहण करना होगा । छः महीने हम यहाँ नहीं रहेंगे। सम्भव है वेलापुरी में हम पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो : 109
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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