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________________ लिए पुरोहित युवरानी जी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।'' मगर एचलदेवी में अब पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया था। उन्होंने यन्त्रवत् पुरोहितों के आदेशों का पालन किया। ताम्बूल देकर उन सुमंगलियों के पैर छुए। उस समय उन्होंने पन-ही-मन प्रार्थना की, "मेरा सुहाग बना रहे, यही आशीर्वाद दें।" उन्होंने आशीर्वाद दिया। युवरानी एक-एक के पैर अलग-अलग स्पर्श कर आशीर्वाद ले रही थीं। जब उन्होंने दण्डनायिका के पैर छुए तो देखा कि उसके पैर का अंगूठा जख्मी था। पूछा-"यह क्या दण्डनाविका जी, आपके पैर के अंगूठे को क्या हो गया?" कुछ नहीं! घर में इयोढ़ी से टकरा जाने से चोट आ गयी है।" दण्टनायिका का जवाब था। यवरानी एचलदेवी का दिल क्षण-भर के लिए धड़क गया। उसकी समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों हुआ। उन्होंने जल्दी-जल्दी काम समाप्त कर सबको विदा किया और अन्दर चली गयीं। माचिकब्बे को लगा कि युवरानी में कुछ परिवर्तन हुआ है परन्तु वह कुछ पूछने का साहस न कर सकी। महानवमी के दिन दोपहर बाद मनोरंजन का कार्यक्रम था। पूर्व सूचना के अनुसार ढिंढोरा पिटवाया गया कि इस मनोरंजन के कार्यक्रम के समय भावी महाराज उपस्थित नहीं रह सकेंगे। वे अन्य कार्य में व्यस्त रहेंगे। अतः राजकुमारों के समक्ष यह कार्यक्रम चलेगा। उसी के अनुसार कार्यक्रम चला। सारा दोरसमुद्र महानवमी की रात्रि को दीपमालाओं से सजकर, धरती पर किसी नक्षत्र-लोक-सा लग रहा था। मनोरंजन से तृप्त जन-समुदाय ने इस उत्सव के हर्षोल्लास में भरकर सारी रात बितायी। सुबह उठते ही फिर ढिंढोरा पिटवाया गया : "शास्त्रज्ञ पण्डितों की सलाह से युवराज का सिंहासनारोहण एवं राजकुमार का यौवराज्याभिषेक महोत्सव-दोनों तेरस के दिन शतभिषा नक्षत्र को वेला में सम्पन्न करने का निर्णय हुआ हैं। सबसे निवेदन है कि वे शान्तिपूर्वक उसमें सहयोग दें। आज सिंहासनारोहण का पात्र समारम्भ था और कोई कार्यक्रम नहीं रहा इसलिए राजमहल के प्रांगण में फिलहाल सार्वजनिकों का प्रवेश नहीं हो सकेगा। तेरस को ही प्रवेश के लिए द्वार खुलेंगे।" राजधानी के कोने-कोने में खबर पहुंचते देर नहीं लगी। उत्साह का सारा वातावरण एकाएक ठण्डा पड़ गया। सारे अधिकारी राजमहल में इकट्ठे हुए। उन्हें युवराज की अस्वस्थता से अवगत कराया गया। पिछली रात आराम करने के बाद जब युवराज जागे तो उनका वह जख्मी पैर सूजकर हाथी के पाव-सा हो गया था। उसे हिला-डुला भी 118 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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