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________________ की उनकी इच्छा है। आगे क्या होगा सो अब कहा नहीं जा सकता। इस विषय में महाराज ने मुझसे पूछा भी। यह सुनकर मेरे भी मन में कुछ खलबली हुई। मुझे तो गद्दी मिलनेवाली नहीं। अगर पिता ने बेटे को गद्दी पर बिठाना चाहा तो मेरे मन में खलबली क्यों हो? यह मेरी समझ में नहीं आया। यदि ऐसा हो जाय तो हमें अपनी अभिलाषाओं को तिलांजलि देनी होगी। शायद इसी कारण से यह खलबली हुई हो। फिर भी मैंने पूछा कि प्रधानमन्त्रीजी इस बारे में क्या कहते हैं। महाराज ने बताया कि अभी उनसे बात नहीं हुई है। इसके अलावा युवराज को भी स्वीकृति होनी चाहिए न? मैंने पूछा। जवाब मिला-ऐसी हालत में आप सभी लोग तो समझाने के लिए हैं न? आप लोग समझाकर स्वीकार करा सकते हैं । स्पष्ट है कि महाराज के विचार किस ओर हैं। ऐसी स्थिति में हम भी क्या कर सकेंगे? युवराज को गद्दी पर बिठाने पर युवरानीजी महारानी बनेंगी।" "ऐसा हुआ तो वे इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर सकेंगे।" "तब हम क्या कर सकते हैं?" "यो हाथ समेटे बैठे रहने पर क्या होगा? हमारी अभिलाषाओं को सफल बनाने के लिए हमें कुछ मार्ग निकालना होगा। इस पर विधा-विनिमय करना पड़ेगा। फिलहाल इस पट्टाभिषेक की बात को स्थगित तो कराएं ?" "जिस पत्तल में खाया उसी में छेद? यह सम्भव है ? अपने स्वार्थ के लिए मैं ऐसा नहीं कर सकता। मुझे ऐसा नहीं लगता कि इससे कोई प्रयोजन सिद्ध होगा।" "दण्डनायकजी इस पर कुछ सोच-विचार करें। फिलहाल पट्टाभिषेक न हो, यह हमारी अभिलाषा है। पद्यला का पाणिग्रहण कुमार बल्लाल कर ले, इसके लिए महाराज की ओर से कुछ दबाव पड़े-ऐसा करना चाहिए। इसके पश्चात् ही युवराज एरेयंग प्रभु का पट्टाभिषेक हो। ऐसा करने पर दोनों काम सध जाएंगे। हमारी आकांक्षा भी पूरी हो जाएगी। युवराज भी महाराजा हो जाएंगे। उनके बाद कुमार बल्लालदेव महाराजा होंगे ही, तब पद्मला महारानी होगी। यदि यों दोनों कार्यों को साधने की योजना बनाएँ तो इसमें द्रोह की कौन-सी बात होगी?" "यह मध्यम मार्ग है। फिर भी यह योजना कुछ ताल-मेल नहीं रखती। तुम अपने भाई से सलाह कर देखो। उनका भी अभिमत जान लो। बाद में सोचेंगे, क्या करना चाहिए।' यह कहकर इस बात पर रोक लगा दी, और सो गये। वे आराम से निश्चिन्त होकर सोये, यह कैसे कहें ? प्रधानमन्त्री गंगराज मितभाषी हैं। उनका स्वभाव ही ऐसा है। अपनी बहन की सारी बातें उन्होंने सावधानी से सुनीं। इसमें कोई गलती नहीं-कहकर एक तरह से अपनी सम्मति भी जसा दी। अपनी बहन की बेटी महारानी बने—यह तो खुशी की बात है न? उनके विचार में यह रिश्ता सब तरह से ठीक ही लगा। परन्तु युबरानी की इच्छा पट्टमहादेवी शान्तला :: 105
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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