SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्या है, यह स्पष्ट रूप से उन्हें विदित नहीं था। इसलिए गंगराज ने अपनी बहन से कहा, "चामू, तुमने युवरानी से सीधे इस विवाह के बारे में बात तो नहीं की और उनसे इनकार की बात भी नहीं जानी। तब तुमने यह निर्णय कैसे किया कि उनकी इच्छा नहीं ?" 'जब मैंने इसका संकेत किया तो उसके लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिला, तब यही समझना चाहिए कि उनकी इच्छा नहीं है !" 44 "सास को जब इच्छा न हो तो उस घर की बहू बनाने की तुम्हारी अभिलाषा ठीक है - यह मैं कैसे कहूँ?" "एक बार सम्बन्ध हो जाने पर, बाद में सब अपने आप ठीक हो जाएगा, भैया। युवरानीजी का मन साफ है। "ऐसा है तो सीधी बात करके उसने मनवा लो। " "उनकी सम्मति के बिना विवाह करना सम्भव नहीं, भैया जी! परन्तु आसानी से सम्मति मिल जाय - ऐसा कार्यक्रम बनाना अच्छा होगा न ? कुमार बल्लालदेव की भी अनुकूल इच्छा है। पद्मला का भी उनमें लगाव हैं। विवाह का लक्ष्य ही वर-वधु का परस्पर प्रेम है, एक-दूसरे को चाहना है। है न ? शेष हम, हमारा काम उन्हें आशीष देना मात्र है। महाराजा विनयादित्य के सिंहासनासीन रहते यह कार्य सम्पन्न हो जाय; फिर उनकी इच्छा के अनुसार एरेयंग प्रभु का पट्टाभिषेक हो; और कुमार बल्लाल को युवराज बना दें तो यह अच्छा होगा न ? दण्डनायकजी पर महाराज का पुत्रवत् वात्सल्य है ही । अतः उनके सिंहासनासीन रहते उनकी स्वीकृति पा लें और इस विवाह को सम्पन्न करा दें, ठीक है न, भैया जी ? आप इस प्रसंग में कैसे बरतेंगे -- इस पर हमारी पद्मला का भविष्य निर्भर है। इस काम में न तो स्वामिद्रोह है न ही राष्ट्रद्रोह। बल्कि इस कार्य से महाराजा, प्रधानमन्त्री और दण्डनायक के बीच अच्छी तरह से जोड़ बैठ जाएगा। आप ही सोच देखिए, भैया । " " 'अच्छी बात है चामू, मैं सोचूँगा। दण्डनायकजी मुझसे मिले थे। कल दोपहर आगे के कार्यक्रम के बारे में महाराजा के साथ मन्त्रणा करनी है। इसलिए हम सुबह ही विचार कर लें - यह अच्छा है ? " "कुछ भी हो, भैया, मेरी आशा को सफल बनाने का यत्न करो। " 41 'इसमें राजद्रोह और राष्ट्रद्रोह के न होने की बात निश्चित हो जाय। और फिर इस कार्य से किसी को किसी तरह की मानसिक वेदना न हो, यह भी मालूम हो जाय, तभी इस दिशा में प्रयत्न करूँगा।" इतना कहकर प्रधान गंगराज ने बहन को बिदा कर दिया। वह विचार करने लगा। मन ही मन वह कहने लगा : बहन की अभिलाषा में कोई गलती नहीं। परन्तु युवराज के राज्याभिषेक होने पर उसकी इच्छा की पूर्ति न हो सकेगी- - इस बात में कोई सार नहीं। उसकी समझ में नहीं आया कि ऐसा कैसे और क्यों होगा? निष्कारण भयग्रस्त है मेरी बहन । दण्डनायक के विचार जानकर ही आगे 106 :: पट्टमहादेवी शान्तला _______
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy