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________________ बाद में सात-आठ वर्ष बीतने पर भी वह गर्भ धारण न कर सकी थी। वह बांभार थी और उसे बच्चे न हो सकने की स्थिति का पता भी चामव्वा ने दाई से जान लिया था। ऐसी ऊँची हैसियतबालों के घर में लड़कियाँ जन्म लें तो उन्हें राजघराने में सम्मिलित करना उस जमाने में कठिन नहीं था। पर राजघराने की लड़की को अपने घर लाकर अपनी प्रतिष्ठा-हैसियत बढ़ाने का मौका कम मिलता था। इसलिए युवराज के लड़के के लिए, खुद लड़की की माँ बन जाने और महाराज की सास बनने की बलवती इच्छा चामव्वा की रही आयो। प्रतिदिन अपनी आराध्या वासन्तिका देवी से भी यही प्रार्थना करती थी। मानव-स्वार्थ को मानो भगवान् भी पूरा करने में सहायक होता हो; विवाह के थोडे ही दिनों के बाद चामव्वा के गर्भधारण के लक्षण दिखाई दिये। अब उसकी इच्छाएँ सब ओर से बढ़ने लगीं। समय आने पर चामब्वा ने पद्मला को जन्म दिया। बच्ची को गोद में ले पति के सामने जाकर उसे दिखाते हुए कहा, "देखिए, मैंने महारानो को जन्म देकर आपकी कोर्ति में चार-चाँद लगा दिये हैं।" यों उकसाकर मरियाने के मन में कुतूहल पैदा करके उसे अपने वश में कर लिया। उसकी आराध्या बासन्तिका देवी ने प्रार्थना स्वीकार करके और उसे उसकी इच्छा से भी अधिक फल देकर उसे निहाल कर दिया। पद्मला के जन्म के दो ही वर्ष बाद उसने चामला को जन्म दिया। इस बार चामव्या ने दण्डनायक से कहा, "दण्डनायकजी, अब आपकी चारों उँगलियाँ घी में । युवराज के दोनों लड़कों के लिए ही मैंने दो लड़कियों को जन्म दिया है। जिस मुहूर्त में हमारा पाणिग्रहण हुआ था वह कितना अच्छा मुहूर्त था।" यह सुनकर दण्डनायक मरियाने खुशी से फूलकर कुप्पा हो गया था। तब मरियाने इतना बूढ़ा तो नहीं, शायद पचास और पचपन के बीच की उसकी आयु रही होगी। पहले उसके प्रत्येक कार्य में स्वामिनिष्ठा और देशहित स्पष्ट था; अब उसका प्रत्येक कार्य अपनी आकांक्षाओं को सफल बनाने के लिए होने लगा। उन्हीं दिनों युवरानी ने एक और पुत्र, तीसरे पुत्र, को जन्म दिया। चामन्ना का स्वभाव ही कभी पिछड़े रहने का नहीं था। मानसिक और दैहिक दोनों तरह से वह बहुत आगे रही। इस कारण उसने एक तीसरी लड़की को जन्म दिया। जिस वासन्तिका देवी की वह आराधना करती थी वह बहुत उदार है, इसकी गवाही उसे मिल गयी। इसी वजह से वह साल में किसीन-किसी बहाने चार-छ: बार वासन्तिका देवी की पूजा-अर्चा करवाती और राज्य के प्रतिष्ठित लोगों को निमन्त्रण देकर बुलवाती। इस प्रकार वह अपने साध्वीपन, पतिपरायणता और औदार्य आदि का प्रदर्शन करती थी। हर कोई कम-से-कम दिन में एक बार दण्डनायक की पत्नी का नाम ले, इस तरह से उसने कार्य का नियोजन कर रखा था। इस सबके पीछे छिपे उसके स्वार्थ का आभास तक किसी को नहीं हो पाया था। मन की बात को प्रकट न होने दें, ऐसा अनुशासन दण्डनायक पर भी लागू पट्टमहादेवी शान्तला :: 100
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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