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________________ चाहिए। प्रधान गंगराज ने भी दण्डनायक मरियाने की बात को पुष्ट करते हुए प्रकारान्तर से उसी का अनुमोदन किया। इससे यह स्पष्ट मालूम होता है कि पहले से ही विचार-विनिमय कर लिया गया है। बड़ी महारानी केलेयब्बरसि जी ने भ्रातृवात्सल्य से इस मरियाने को कहीं से उठाकर आज उसे इस स्तर तक ला बिठाया। उसका विवाह कराकर बड़ा बनाया। अपनी योग्यता से अधिक अधिकार पा जाने पर अधिकार को पिपासा बढ़ती गयी। अपने अधिकार को दृढ़ बनाकर अधिक से अधिक लाभ उठाने का प्रयत्न कर रहा है वह । इस अधेड़ उम्र में भी पुनः प्रधान जी की बहन से अपना दूसरा विवाह करके उसे भी अपने वश में कर लिया है। अब चामव्या राजघराने की समधिन बनने की तैयारी में लगी हुई है। अगर उसे अपनी इस आशा में सफलता पानी हो तो मेरे और मेरे पतिदेव की सम्पति तो होनी चाहिए न ! इस स्थिति में हमें छोड़कर दण्डनायक का मन अन्यत्र क्यों बांधा-पूर्ति की योजना में लगा है! बात बहुत पेचीदी है और हल करना कठिन है। इस सबके पीछे कोई बहुत बड़ा स्वार्थ छिपा हुआ है--यो युवरानी एचलदेवी विचारमग्न हो सोच में पड़ गयी। सच है, जिस महान् स्वार्थ से प्रेरित होकर यह सब हो रहा है, वह क्या हो सकता है? एचलदेवी इस उलझन को सुलझा न सकी। सोसेकस से लौटने के बाद अपने माता-पिता के मन में हो रही एक तरह की परेशानी और एक कशमकश का स्पष्ट अनुभव बिट्टिदेव को हो रहा था। इस सम्बन्ध में वह सीधा कैसे पूछ सकता है ? पूछकर जाने बिना रहना भी उससे नहीं हो पा रहा था। लौटने के दो-तीन दिन बाद वह और रेविमय्या दोनों, घोड़ों को लेकर सवारी करने चले। उस एकान्त में यह सोचकर कि शायद रेविमय्या इस परेशानी का कारण जानता होगा, बिट्टिदेव ने बात छेड़ी। "रेविमय्या! माता जी और युवराज कुछ चिन्तित-से दिखाई पड़ते हैं। हो सकता है कि मेरा सोचना गलत हो। फिर भी जो मैं महसूस करता हूँ उसे उन्हीं से पूछने को 'मेरा मन नहीं मान रहा है। उनकी इस मानसिक अस्वस्थता का कारण क्या हो सकता है। इस सम्बन्ध में तुमको कुछ मालूम है?" बिट्टिदेव ने पूछा। रेविमय्या ने कुछ जवाब नहीं दिया। उसने घोड़े को रोका। बिट्टिदेव ने भी अपना घोड़ा रोक लिया। दोनों आमने-सामने हो गये । रेविमय्या वे बिट्टिदेव को इस तरह देखा कि मानो वह उनके हृदयान्तराल में कुछ खोज रहा हो। बिट्टिदेव प्रतीक्षा में कुछ देर तक मौन रहा। जब रेविमय्या ने कुछ कहा नहीं तो पूछा, "क्यों रेविमय्या, चुप क्यों हो? क्या कोई रहस्य है?" रेविमय्या ने बहुत धीमे स्वर में कहा, "अप्पाजी, राजघराने की बातों के विषय में इस तरह सैर करते समय बोलना होता है?" बिट्टिदेव ने होठ दबाकर चारों और नजर दौड़ायो। और कहीं कोई नजर नहीं 9R :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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