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के जीवन की कथा सात-आठ सदियों से जन-समूह में प्रसारित होती आयी है। इसके साक्षीभूत कप्पे (मण्डूक) चन्निगरायमूर्ति बेलूर में है। हमारे पूर्वजों ने अपने सच्चे इतिहास को सप्रमाण संरक्षित रखने की दृष्टि से शायद विचार नहीं किया होगा। इसी से हमें आज कितनी ही लोकगाथाओं में ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिल पाते। आज हमें अपने पूर्वजों के बारे में, शिलालेख तथा ताम्रलेखों द्वारा अनेक बातों का पता चलता है। यद्यपि साहित्यिक कृतियों में भी कुछ-न-कुछ सम-सामयिक तथ्य मिल जाते हैं, 'पर उनकी पूरी प्रामाणिकता हम नहीं मिल पा रही है। विष्णुवर्धन की पलियों में एकलक्ष्मीदेवी के माँ-बाप वंश आदि के बारे में ज्ञात नहीं हो सका है। शान्तला के मांबाप के बारे में, रानी जम्मलदेवी के विषय में, रानी किरिया शान्तला (इस उपन्यास में उसका आगमन नहीं हुआ है) के सम्बन्ध में, अथवा रानी राजलदेवी के विषय में पर्याप्त साधन मिल जाते हैं, लेकिन लक्ष्मीदेवी के बारे में नहीं। उसके गर्भ से उत्पन्न पोय्सल के सिंहासनारोहण होने से उसका नाममात्र मालूम हो रहा है। अन्य बातों का पता नहीं मिल पा रहा है। लेकिन इससे एक व्यक्ति के रहने के बारे में प्रमाण नहीं मिले तो, उसका अस्तित्व ही नहीं, ऐसा मत व्यक्त करना कहाँ तक न्याय्य है?
यह उपन्यास है। इतिहास का अपोह किये बिना रसपोषण के लिए अनेक पात्रों की उद्भावना आवश्यक हो जाती है। जकण-डंकण की लोक-गाथाओं में उपर्युक्त मानवीय मूल्य भरे पड़े हैं, इसीलिए उन शिल्पाचार्यों को यहाँ लिया गया है। उपन्यासकार होने के नाते मैंने वह स्वातन्त्र्य अपनाया है। और भी अनेक आलेखों में उल्लिखित शिल्पियों को यहाँ लिया गया है।
इस उपन्यास में करीब दो सौ शिलालेखों, ताम्र-पत्रों एवं ताड़-पत्रों में उल्लिखित ऐतिहासिक पात्र आये हैं। वैसे ही लगभग 220 कल्पित पात्र भी हैं। इन सबमें लगभग 65 तो शिलालेखादि में उल्लिखित पात्र और लगभग 30 कल्पित पात्र मुख्य हैं।
ऐतिहासिक प्रमाणों में न रहनेवाली अनेक घटनाओं की भी यहाँ कल्पना को गयी है। उपन्यास होने से एवं अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत होने से भी, पाठकों की अभिरुचि को अन्त तक बनाये रखना आवश्यक था। वह सब कल्पना से ही साध्य था। जहाँ तक मैं समझता हूँ, मेरी यह रचना पाठकों को रुचिकर लोगी, उन्हें तृप्ति देगी।
इसकी घटनाएँ कर्नाटक के अनेक तब और अब के प्रमुख स्थानों से सम्बद्ध हैं। उनमें से कुछेक हैं-बेलुगोल (श्रवण बेलुगोल), शिवगंगा (कोडुगल्लु बसव), सोसेकरु (अंगडि), बेलापुरी (बेलूर), दोरसमुद्र (हलेबीडु), यादवपुरी (तोण्णूर), यदुगिरि (मेलुकोटे), बलिपुर (बल्लिगावे बेलगावि), कोवलालपुर (कोलार), क्रीडापुर (कैदाल), पुलिगेरे (लक्ष्मेश्वर), हा गल्लु, बंकापुर, तलकाडु, कंची, नंगलि, धारा इत्यादि।
ग्यारह