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________________ है। आप भाग्यवान हैं। बाहुबलि की कृपा से अम्माजी एक योग्य घर की गृहिणी होकर पितृकुल और श्वसुर-कुल दोनों की कीर्ति को बढ़ाने लायक बनेगी, इसमें कोई सन्देह नहीं । वैरी से प्रेम कर सकनेवाले हमारे बाहुबलि स्वामी इस मासूम बच्ची को उठाकर अपने सिर पर बैठाकर नाच उठेंगे। उनकी कृपा रही तो असाध्य भी आसानी से साध्य हो जाएगा। राजदष्टि भी आप पर विशेष रूप से कमल वै । ऐसी दशा में कहना ही क्या है?" __ हेग्गड़े मारसिंगय्या ने कहा, "हमारे महाराज प्रजावत्सल हैं। वे सभी से प्रेम करते हैं। हमपर विशेष प्रेम है, यह कहना ज्यादती होगी। उनकी कृपा और प्रेम के हम पात्र हैं, और उस कृपा और प्रेम का हम निर्वहण करने योग्य बने रहें, यही हमारा कर्तव्य है।" "तो क्या महाराज जिस-तिस के साथ राजकुमार को भेजेंगे?" पुजारी के सवाल का उत्तर हेगड़ेजी से क्या मिल सकेगा? वे मौन रहे। परिस्थिति से परिचित राजकुमार बिट्टिदेव ने कहा, "इसमें महाराज की और हेगड़ेजी की इच्छा-अनिच्छा नहीं। मैं स्वयं अपनी इच्छा से आज्ञा लेकर इनके साथ आया हूँ।" उसे अपनी माता की बात याद आ गयी। ___ "बात तो वही हुई न।" पुजारी ने बात को टाल दिया। बाहुबलि के प्रसाद को सबमें बाँट दिया गया। उसे प्रसाद के बदले भोजन ही कहना ज्यादा संगत होगा। प्रसाद स्वीकार करते वक्त भी बिट्टिदेव की आँखें उस भव्य बाहुबलि की मूर्ति पर ही लगी थीं। बोकिमय्या राजकुमार की उस दृष्टि को पहचान चुका था। उसे उस दिन की चर्चा याद आयी। उन्होंने पूछा, "आज राजकुमार के मन में बाहुबलि की इस नानता के कौन-से भाव का स्फुरण हुआ है ?" अन्य सभी लोगों की उपस्थिति में इस प्रश्न के कारण राजकुमार के मन में कुछ कशमकश पैदा हो गयी। उत्तर न देकर बोकिमय्या की ओर और अन्य उपस्थित जनों की ओर भी नजर दौड़ायी। शान्तला ने परिस्थिति को समझा, और कहा, "गुरुवर्य! इस विषय पर दोपहर के पाठ के समय चर्चा की जा सकेगी न? स्वामी की सन्निधि में नहीं। यह चर्चा करने का स्थान नहीं। भगवान् की सन्निधि में अपने आपको अर्पित किये बिना फल प्राप्ति नहीं होगी, यह आप ही ने कहा था। अब आप ही चर्चा का आरम्भ करें?" शान्तला का यह सवाल बाहुबलि के चरणसेवी पुजारी के मन में काँट की तरह चुभ गया। उसने कुतूहल से बोकिमय्या और शान्तला की ओर देखा। उसने सोचा, कुछ गरमी पैदा होगी। परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। "अम्माजी, तुम्हारा कहना सच है। आखिर मैं भी तो मनुष्य हूँ न? नयी बात याद आती है तो पुरानी बात पिछड़ जाती हैं । तुम्हारा कहना ठीक है। यहाँ चर्चा करना 74 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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