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________________ "रविमय्या कहता है कि हमारे अप्पाजी का उस लड़की के साथ गाढ़ा स्लेह हो गया है। वह मैत्री-पता नहीं कि इन दोनों को कहाँ ले जाएगी?" "इतना सब सोचने जैसी उन बच्चों की उम्र ही कहाँ है? उन दोनों में जो प्रेम अंकुरित हुआ है वह परिशुद्ध है। दोनों में ज्ञानार्जन की पिपासा बराबर-बराबर है। यही उनके बीच इस मैत्री-सम्बन्ध का कारण है। इतना ही।" "अब तो इतना ही है, परन्तु वह ऐसे ही आगे बढ़ा तो उसका क्या रुख होगा, कौन जाने!" "यदि प्रभु को यह बात आतंक पैदा करनेवाली लगती है तो अभी प्रभु ने जाने की अनुमति ही क्यों दी?" युवरानी एचलदेवी ने दुविधाग्रस्त मन से पूछा। "इसके लिए कारण है।" "क्या है वह?" "फिर कभी आराम से कहूंगा। अब इस बात को लेकर दिमाग खराब करने की जरूरत नहीं। अधिकार-सुख मिलने पर मनुष्य अपनी पूर्वस्थिति को भूल जाता है, यह बात यहाँ आने के बाद, प्रत्यक्ष प्रमाण से साबित हो गयी। ये सब बातें सोसेऊरु में बताऊँगा। हमें भी कल सोसेऊरु की यात्रा करनी है। अप्पाजी यहीं महाराज के साथ रहेंगे। छोटे अप्पाजी से कहना है कि वह बेलुगोल से सीधे सोसेऊरु पहुँचें।" इतना कहकर युवराज वहाँ से चल पड़े। अपने पतिदेव कुछ परेशान हो गये हैं, इस बात को युवरानी एचलदेवी ने समझ . लिया। परन्तु इस परेशानी का कारण जानने के लिए उन्हें सोसेकर पहुंचने तक प्रतीक्षा करनी ही होगी। हेग्गड़े मारसिंगय्या के परिवार के साथ कुमार बिट्टिदेव, रेविमय्या और राजघराने के चार रक्षकभट भी चले। दो दिनों में ही चार कोस की यात्रा पूरी कर वे बेलुगोल क्षेत्र जा पहुँचे। शान्तला और बिट्टिदेव ने अपने-अपने घोड़ों पर ही पूरी यात्रा की थी। उन दोनों के अंगरक्षक बनकर रेविमय्या उनके साथ रहा। सबसे आगे हेग्गड़े का रक्षक-दल, सबसे पीछे राजमहल के रक्षा-दल थे। आराम से यात्रा करते हुए उन लोगों ने गोम्मटराय नाम से प्रसिद्ध चामुण्डराय से नव-निर्मित बेलुगोल ग्राम में मुकाम किया। दूसरे दिन प्रातःकाल उठकर कटवप्र और इन्द्रगिरि के बीच नवनिर्मित ग्राम से लगे सुन्दर पुष्करणी देवर-बेलुगोल में नहा-धोकर बाहुबलि स्वामी के दर्शन करने के लिए सबने इन्द्रगिरि पहाड़ का आरोहण किया। अधिक उम्र होने पर भी मारसिंगय्यामाचिकब्बे कहीं बैठकर सुस्ताये बिना ही पहाड़ पर चढ़ चले । हँस-मुख, स्वागत करने 72 :: पट्टमहादेवी शान्तला
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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