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________________ "महाराज से ही पूछो, अप्पाजी।" "क्या पूछना है?" एरेयंग प्रभु, जो तभी वहाँ आये थे, पूछा। परिस्थिति की जानकारी हुई। थोड़ी देर तक सोचकर उन्होंने कहा, "अप्पाजी, क्या कुछ दिन ठहरकर पीछे बलिपुर हो आना न हो सकेगा?" "बलिपुर में मेरा क्या काम है?" "उस हेग्गड़े की लड़की के साथ घोड़े की सवारी, इधर-उधर घूमना-फिरना यह सब बेरोकटोक चल सकेगा न?" "उसके लिए मैं उनके साथ जाना नहीं चाहता। एक दिन बाहुबलि के बारे में कवि महोदय के साथ काफी चचा हुई थी। उनके साथ बेलुगाल में बाहुबलि का दर्शन कर लूँ तो वह अधूरी बात पूर्ण हो सकेगी; इसी आशा से मैं जाने की अनुमति चाहता था।" "यदि ऐसा है तो हो आओ अप्पाजी! पर तुम्हारे साथ..." "रेविमय्या आएगा।" "ओह-ओह, तब तो सारी तैयारी हो गयी है । सो भी स्वीकृति के पहले हो।" "प्रभु से अच्छे काम में कभी बाधा ही नहीं हुई।" कहते हुए आगे बाप्त के लिए मौका न देकर बिट्टिदेव वहाँ से चल पड़ा। युवरानी एचलदेवी अपने बेटे की उत्साह-भरी दृष्टि को देखकर मन-ही-मन कुछ सोचती हुई खड़ी रही। "क्या, युवरानीजी बहुत सोचती हुई-सी लग रही हैं।" "कुछ भी तो नहीं।" कहती हुई युवराज की तरफ देखने लगी। "हमसे छिपाती क्यों हैं? छोटे अप्पाजी और हागड़ेजी की बेटी की जोड़ी बहुत सुन्दर है-यही सोच रही थीं न?'' "न न, ऐसा कुछ नहीं। हमारी सभी इच्छाओं और आकांक्षाओं के लिए राजमहल की स्वीकृति मिलनी चाहिए न? लोगों की भी स्वीकृति होनी चाहिए न?" "राजपरिवार और प्रजाजन स्वीकार कर लें तो युवरानी की भी स्वीकृति है। यही न?" युवराज ने स्पष्ट किया। "क्या युवरानी की स्वीकृति पर्याप्त है? मुझे अगर स्वतन्त्रता हो तो मैं स्पष्ट रूप से कहूँगी कि इसमें कोई एतराज नहीं।" "यदि बड़ा बेटा होता तो प्रश्न कुछ जटिल होता। लेकिन अब ऐसी समस्या के लिए कोई कारण नहीं है।" "वास्तव में मैंने इस दिशा में कुछ सोचा ही नहीं। हेगड़ेजी की लड़की का पाणिग्रहण जो भी करेगा वह महाभाग्यवान् होगा। परन्तु इस सम्बन्ध में जिसने जन्म दिया उसी ने जब सोच-विचार नहीं किया हो तो हम क्यों इस पर जिज्ञासा करें?" पट्टमहादेवी शान्तला :: 71
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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