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________________ dynasty) ग्रन्थ में मेरे उस लेख को प्रकाशित किया गया। गवेषणा भी एक धुन है। जिस किसी को वह लग जाय तो आसानी से नहीं छूटती । इसी धुन का ही फल था कि 'महाकवि लक्ष्मीश का स्थल और काल' नामक ग्रन्थ की रचना के लिए कर्नाटक साहित्य अकादमी ने मुझे सम्मानित किया। ___ इतना सब बताने का उद्देश्य यही है कि प्रस्तुत उपन्यास की रचना के लिए मूल सामग्नी जुटाने में ही मेरी बहुत अधिक शक्ति और समय लग गया। इसके लेखन का प्रारम्भ 18 सितम्बर, 1968 को हुआ था और परिसमाप्ति 25 दिसम्बर, 1976 को। जकणाचारी के सम्बन्ध में 1962 में लिखित लगभग सौ पृष्ठ भी इसी उपन्यास में सम्मिलित हैं। इन आठ वर्षों में इस उपन्यास का लेखन केवल 437 दिनों में हुआ। कुछ दिन दो ही वाक्य, कुछ दिन केवल आधा पृष्ठ, तो कुछ दिन तीन-चार पृष्ठ और कुछ दिन तो पन्द्रह-बीस पृष्ठ भी लिख गया। बीच-बीच में महीने-के-महीने भी निकल गये, पर कुछ भी नहीं लिखा जा सका। अनावश्यक मानने योग्य एक प्रश्न को, जिसे दूसरे भी मुझसे पूछ सकते थे, अपने आप से किया : कन्नड़ में शान्तला देवों के बारे में अब तक तीन-चार उपन्यास आ चुके हैं तो फिर यह उपन्यास क्यों? मुझे यह भास हुआ कि इस समय एक ऐसे बृहद् उपन्यास की आवश्यकता है। और फिर, मेरी गवेषणा के कतिपय अंश पिछले उपन्यासों में नहीं आ सके थे। मुझे तो ऐतिहासिकांश ही कल्पिांशों से प्रधान थे । तथ्यपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास की रचना करने पर सत्य के समीप की एक भव्यकल्पना का निरूपण किया जा सकता है-यह मेरा विश्वास है। यह उपन्यास शान्तलादेवी के जीवन के चालीस वर्षों की घटनाओं से सम्बद्ध है। शान्तला देवी का परिपूर्ण व्यक्तित्व हमें अनेक शिलालेखों एवं ताम्रपत्रों से ज्ञात होता है। उनमें सूचित शान्तलादेवी के गुणी व्यक्तित्व और कृतित्व को उजागर करनेवाले कतिपय विशेषण इस प्रकार हैं-- सकलकलागमानूने, अभिनवरुक्मिणीदेवी, पतिहितसत्यभामा, विवेकैकबृहस्पति, प्रत्युत्पन्नवाचस्पति, मुनिजनविनेयजनविनीता, पतिव्रताप्रभावसिद्धसीता, शुद्ध-चरित्रा, चतुस्समयसमुद्धरणकरणकारणा, मनोजराजविजयपताका, निजकलाभ्युदयदीपिका, गीतवाद्यनृत्यसूत्रधार), जिनसमयसमुदितप्रकारा, आहाराभयभेषजशास्त्रदाना, सकलगुणगगानूना, व्रतगुणशीला, लोककविख्याता, पुण्योपार्जनकरणकारणा, सौतिगन्धहस्ति, जिनधर्मकथाकथनप्रमोदा, जिनधर्मनिर्मला, भव्यजनवत्सला, अगण्यलावण्यसम्पन्ना, जिनगन्धोदकपवित्रीकृतोत्तमांगा, मृदुमधुरवचन प्रसन्ना, पंचलकार (वस्तु, शिल्प, साहित्य, चित्र, संगीत-ये ही'ल' ललितकलापंचक हैं), पंचरत्नयुक्ता, संगीतविद्यासरस्वती, अभिनवारुन्धति, पतिहितव्रता, सर्वकलान्विता, सर्वमंगलस्थितियुता,
SR No.090349
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size8 MB
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